Poultry: पोल्ट्री में लागत कम करेगा IFS सिस्टम, जानें क्या है जिसकी पोल्ट्री एक्सपो में हो रही चर्चा

Poultry: पोल्ट्री में लागत कम करेगा IFS सिस्टम, जानें क्या है जिसकी पोल्ट्री एक्सपो में हो रही चर्चा

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS) का प्लान केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने तैयार किया है. लेकिन इसकी चर्चा पोल्ट्री इंडिया एक्सपो-2024 हैदराबाद में हो रही है. इस सिस्टम से मुर्गियों को बकरियों के साथ पाला जाता है. एक्सपर्ट का कहना है कि बैकयार्ड के बाद अब कमर्शियल पोल्ट्री में भी आईएफएस का इस्तेमाल होने लगा है. 

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कमर्शियल और बैकयार्ड, ये दो वो तरीके हैं जिससे पोल्ट्री में अंडे और चिकन का कारोबार किया जाता है. देश में अंडे-चिकन का बड़ा बाजार है. वक्त के साथ-साथ हर साल इस बाजार में बढ़ोतरी हो रही है. अंडों का उत्पादन 14 हजार करोड़ सालाना पर पहुंच गया है. वहीं चिकन का प्रोडक्शन 52 लाख टन को भी पार कर चुका है. कमर्शियल हो या बैकयार्ड पोल्ट्री, दोनों के ही प्रोडक्ट की डिमांड लगातार बनी रहती है. बैकयार्ड पोल्ट्री में देसी अंडे और चिकन के लिए भी देसी मुर्गे का कारोबार होता है. बैकयार्ड पोल्ट्री वो है जो खेत-खलिहान, फार्म हाउस और घर के पीछे के हिस्से में 10-20 से लेकर 100-50 मुर्गियों का पालन किया जाता है. 

दोनों में ही कोशि‍श ये होती है कि कैसे मुनाफा बढ़ाने के लिए लागत को कम किया जाए. इसी लागत को कम करने के लिए इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS) तैयार किया है. पोल्ट्री इंडिया एक्सपो-2024 में इसकी खूब चर्चा हो रही है. हैदराबाद में एक्सपो का आयोजन किया गया है. इस सिस्टम के तहत मुर्गियों को बकरियों के साथ पाला जाता है. पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो गांवों में बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत तो मुर्गी पालन इसी तरह से ही होता है. गाय-भैंस, भेड़-बकरी के साथ मुर्गी पालन किया जाता है. एक्सपर्ट की मानें तो इस सिस्टम से मुर्गियों के फीड की लागत 30 से 40 ग्राम तक कम हो जाएगी. 

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इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम से ऐसे कम होती है लागत

आईएफएस के जानकार बीएम सिंह की मानें तो इसके तहत एक ऐसा शेड तैयार किया जाता है जिसमे बकरी और मुर्गियां बराबर में साथ रहती हैं. दोनों के बीच फासले के तौर पर लोहे की एक जाली लगी होती है. जैसे ही बकरियां सुबह चरने के लिए चली जाती हैं तो जाली में लगा एक छोटी सा गेट खोल दिया जाता है. गेट खुलते ही मुर्गियां बकरियों की जगह पर आ जाती हैं. यहां जमीन पर या लोहे के बने स्टॉल में बकरियों का बचा हुआ चारा जिसे अब बकरियां नहीं खाएंगी पड़ा होता है. इसे मुर्गियां बड़े ही चाव से खाती हैं. 

बचे हुए हरे चारे में बरसीम, नीम, गूलर और उस तरह के आइटम भी हो सकते हैं, इसे जब मुर्गियां खाती हैं तो उन्हें कई तरह का फायदा पहुंचाता है. और दूसरा ये कि जो फिकने वाली चीज होती है उसे मुर्गियां खा लेती हैं. इस तरह से जिस मुर्गी को दिनभर में 110 ग्राम या फिर 130 ग्राम तक दाने की जरूरत होती है तो इस सिस्टम के चलते 30 से 40 ग्राम तक दाने की लागत कम हो जाती है. 

मुर्गियों का प्रोटीन बनाने में काम आती हैं बकरियों की मेंगनी 

एक्सपर्ट बताते हैं कि बकरियों संग पलने वालीं मुर्गियों के लिए प्रोटीन की भी कोई कमी नहीं रहती है. करना बस इतना होता है कि पानी का एक छोटा सा तालाब बना लें. इसका साइज मुर्गियों की संख्या पर भी निर्भर करता है. इसकी गहराई भी बहुत कम ही होती है. इसमे थोड़ी सी मिट्टी डालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी मिला दें. साइज के हिसाब से मिट्टी और मेंगनी का अनुपात भी तय किया जाता है. 

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जानें एक बकरी पर कितनी पाली जाएंगी मुर्गियां 

आईएफएस सिस्टम एक बकरी पर पांच मुर्गियां पाली जा सकती है. हालांकि सीआईआरजी ने एक एकड़ के हिसाब से प्लान को तैयार किया है. इस प्लान के तहत आप बकरियों संग मुर्गी पालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी से कम्पोस्ट भी बना सकते हैं. इस कम्पोस्ट का इस्तेमाल आप बकरियों का चारा उगाने में कर सकते हैं. ऐसा करने से एकदम ऑर्गनिक चारा मिलेगा. 

 

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