US-INDIA Tariff War अमेरिका ने टैरिफ वॉर छेड़ दिया है. अमेरिका चाहता है कि उसका जो सामना भारत में बिके उस पर कम से कम डयूटी लगाई जाए. वहीं दूसरी ओर अमेरिका ने दबाव बनाने के लिए भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले प्रोडक्ट पर कई तरह की डयूटी लगा दी है. जिसका नतीजा ये निकला रेट के मामले में भारत दूसरे देशों से मुकाबला नहीं कर पा रहा है. भारत के प्रोडक्ट इंटरनेशनल मार्केट में पीछे छूट रहे हैं. झींगा का भी कमोबेश यही हाल है. अच्छी क्वालिटी का होने और उत्पादन में नंबर दो की पोजिशन पर होने के बाद भी झींगा बुरे दौर से गुजर रहा है.
झींगा के खिलाफ अभी अमेरिका का टैरिफ वॉर रुका नहीं है. यही वजह है कि अभी हाल ही में झींगा को लेकर आई क्रिसिल रेटिंग्स ने भी होश उड़ा दिए हैं. रिपोर्ट की मानें तो इस साल भी झींगा का एक्सपोर्ट स्थिार रहेगा. इंटरनेशनल मार्केट में उलटफेर और अमेरिकी टैरिफ वॉर का असर झींगा किसान ही नहीं एक्सपोर्टर पर भी पड़ रहा है.
अमेरिका द्वारा झींगा पर रेसिप्रोकोल टैरिफ लगाए जाने के बाद से अब झींगा पर और बड़ा खतरा मंडराने लगा है. भारतीय झींगा इंडस्ट्री पहले ही अमेरिका की एंटी डंपिंग और काउंटर वैलिंग डयूटी से जूझ रही थी. इसके बाद अमेरिका ने 26 फीसदी का रेसिप्रोकोल टैरिफ और लगा दिया. वहीं 2.49 फीसद एंटी डंपिंग डयूटी और 5.77 फीसद की काउंटर वैलिंग डयूटी भी वसूली जा रही है. अगर दोनों डयूटी और टैरिफ को जोड़ दें तो भारत को अमेरिका में झींगा बेचने के लिए 34.26 फीसद तक की डयूटी देनी होती है. गौरतलब रहे अमेरिका भारतीय झींगा का 70 फीसद का खरीदार है. करीब 20 फीसद चीन खरीदता है. बाकी बचे 10 फीसद में और दूसरे देश शामिल हैं.
लेकिन अब परेशानी ये है कि झींगा पर लगने वाली इस डयूटी के साथ अमेरिकी बाजारों में भारतीय झींगा कैसे बिकेगा. क्योंकि वहां के बाजारों में भारत का सीधा मुकाबला इक्वाडोर से है. इक्वाडोर को अमेरिका में झींगा बेचने के लिए सिर्फ 13.78 फीसद ही डयूटी चुकानी होती है. विश्व में भारत और इक्वाडोर ही सबसे ज्यादा झींगा का उत्पादन करते हैं. पहले पर इक्वाडोर तो दूसरे पर भारत है.
झींगा एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि आज विश्व स्तर पर 60 लाख टन झींगा का उत्पादन हो रहा है. इसमे से 30 लाख टन झींगा बाजार में आता है. विश्व में झींगा का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वालों में इक्वाडोर 15 लाख टन और भारत 10 लाख टन है. अगर खरीदारों की बात करें तो बाजार में अमेरिका 60 फीसद और चीन 30 फीसद झींगा की खरीदारी करता है. चीन अपना झींगा उत्पादन भी करता है. ऐसे में भारत और इक्वाडोर दोनों ही एक्सपोर्ट पर निर्भर हैं. खासतौर पर भारत में झींगा का नाम मात्र का घरेलू बाजार है.
झींगा एक्सपर्ट और किसान डॉ. मनोज कुमार शर्मा का कहना है कि 14-15 ग्राम वजन वाला झींगा तालाब में 70 से 80 दिन में तैयार हो जाता है. अगर झींगा पालन में किसी तरह की कमी रह भी जाती है तो ज्यादा से ज्यादा 90 दिन लगते हैं. अगर बड़े साइज का झींगा तैयार करना है तो ज्यादा से ज्यादा चार महीने यानि 120 दिन में तैयार हो जाएगा. इस तरह से एक साल में झींगा की तीन से चार फसल आसानी से तैयार हो जाती हैं.
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