छोटी आबादी होने के बावजूद, भैंस भारत में उत्पादित दूध का लगभग आधा हिस्सा है. भैंसों को भारतीय डेयरी उद्योग की रीढ़ माना जाता है. सभी भैंस नस्लों में, मुर्रा भैंस डेयरी उद्योग में सबसे बड़ी प्रजनक है, जो इसके महत्व को दर्शाता है. मुर्रा भैंस को सबसे अधिक हरियाणा में पाला जाता है. इसमें बड़ी संख्या में किसान हैं जो फसल उगाने के साथ-साथ भैंस पालते हैं. राज्य में, 6.6 मिलियन भैंसों की आबादी में से 5.1 मिलियन मुर्रा भैंस हैं. ये कुल भैंस आबादी का 77 प्रतिशत है, जो भारतीय राज्यों में सबसे अधिक मुर्रा भैंस घनत्व है. ग्रामीण हरियाणा में प्रति हजार घरों पर भैंसों की संख्या 1778 है. यह राष्ट्रीय मूल्य से तीन गुना से भी अधिक है. मुर्रा भैंसों को राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है जलवायु परिवर्तन के कारण मुर्रा भैंसों का दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता दोनों प्रभावित होने की संभावना है.
मुर्रा भैंस, भैंस की एक प्रमुख डेयरी नस्ल है. मुर्रा भैंस का उत्पादन और उपयोग भारतीय किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. मुर्रा भैंस भारत के लगभग सभी राज्यों में उपलब्ध है. मुर्रा भैंस मुख्य रूप से हरियाणा के रोहतक, करनाल, हिसार, पंजाब और दिल्ली आदि राज्यों में देखी जाती है. मुर्रा भैंस अपने सर्वोत्तम दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. इतना ही नहीं मुर्रा नस्ल को भारत की सबसे अधिक दूध देने वाली भैंस की नस्ल भी कहा गया है. अगर गायों की बात करें तो साहीवाल नस्ल (साहीवाल मवेशी) भारत की देशी नस्लों में सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल है.
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मुर्राह भैंस एक ब्यांत में औसतन 1680 - 2000 किलोग्राम दूध देती है. साथ ही, मुर्राह नस्ल की भैंस के दूध में 7% वसा पाई जाती है. इसीलिए भारत में सबसे ज़्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल "मुर्राह" है. मुर्राह नस्ल की भैंस का गर्भकाल 10 महीने और 10 दिन (310 दिन) होता है.
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