गांवों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक में मत्स्य पालन को आय का एक जरिया माना जाता है. बाजारों में मछली की बढ़ती मांग ने इस रोजगार को काफी बढ़ावा दिया है. ऐसे में मत्स्य पालन की नई तकनीक न सिर्फ बेरोजगारों को स्वरोजगार मुहैया करा रही है बल्कि बेहतर मुनाफा भी दे रही है. झारखंड के रामगढ़ जिले के कोयलांचल क्षेत्र में सीसीएल की बंद पड़ी खदान में नई तकनीक केज सिस्टम से मत्स्य पालन से न सिर्फ बेरोजगारों को स्वरोजगार मिल रहा है, बल्कि इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है. सीसीएल की बंद पड़ी खदानों में सालों भर पानी भरा रहता है, इस कारण इन जलाशयों में मत्स्य पालन करना और बेहतर हो जाता है.
इन जलाशयों में पिछले कुछ वर्षो से केज सिस्टम के जरिए करीब 150 परिवार मत्स्य पालन करते आ रहे हैं. इस काम से वे अपनी बेहतर आमदनी करते हुए अपनी जीविका चला रहे हैं.
मत्स्य पालन करने वालों के अनुसार यहां से बेरोजगार लोग जो बाहर कमाने के लिए पलायन करते थे, उसमे काफी कमी आई है क्योंकि बेरोजगार लोग इसे ही अपना स्वरोजगार बना रहे हैं. इस काम में जिला मत्स्य विभाग भी काफी मदद कर रहा है. इस नए तकनीक से मत्स्य पालन और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार के सहयोग से जिला प्रशासन ने रामगढ़ जिले के सीसीएल की बंद पड़ी 45 खदानों को चिन्हित किया है. इसमें फिलहाल आरा, सारुबेड़ा, स्याल और सौंदा कोलियरी की बंद पड़ी चार खदानों में डीएमएफटी फंड से तीन करोड़ 46 लाख रुपये की लागत से केज सिस्टम बनाया जा रहा है. इससे करीब 250 परिवारों को रोजगार देने की पहल की जा रही है.
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वहीं इस मामले में रामगढ़ के डीसी चंदन कुमार ने बताया कि रामगढ़ जिले में केज सिस्टम से मत्स्य पालन में अच्छी संभावना देखी जा रही है. फिलहाल चार खदानों में केज के जरिए मत्स्य पालन के लिए तीन करोड़ 46 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इससे करीब ढाई सौ परिवारों को स्वरोजगार मिल पाएगा. इस पूरे इलाके के लिए यह एक अच्छी उपलब्धि होगी.
मत्स्य पालन कर रहे शशिकांत महतो ने बताया कि जिला प्रशासन डीएमएफटी फंड से केज कल्चर के जरिए बेरोजगारों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सीसीएल की बंद पड़ी खदानों में मत्स्य पालन को बढ़ावा दे रहा है. इस योजना से करीब 250 परिवार को रोजगार हासिल होगा. वहीं दूसरे मत्स्य पालक सकलदेव कुमार ने बताया कि डीएमएफटी फंड इस क्षेत्र के लोगों के लिए वरदान साबित होगा.
सकलदेव कुमार कहते हैं, पहले हम लोग 40-50 टन सालाना मछली उत्पादन करते थे. इस योजना के आने के बाद हमारा लक्ष्य सिर्फ दो खदानों से 150 से 200 टन मछली उत्पादन का होगा. सकलदेव कुमार ने बताया कि हम लोग यहां पांच तरह की मछली का पालन कर रहे हैं. हमारी मछली बिहार, बंगाल और झारखंड में सप्लाई होती है. जाहिर है कि सीसीएल की बंद खदानों में नई तकनीक वाले केज सिस्टम से न सिर्फ बेरोजगारों के बीच स्वरोजगार बढ़ रहा है, बल्कि इससे बाहर कमाने जाने वाले लोगों को पलायन भी रोका जा रहा है.
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