झारखंड एक बार फिर गंभीर सूखे की चपेट में है. जिन खेतों को अभी हरा भरा होना चाहिए था, उन खेतों में सूखे के निशान दिखाई दे रहे हैं. हरियाली के नाम पर घास के अलावा कुछ भी नहीं है. ऐसे में किसानों को अब इस बात की चिंता सता रही है कि वो इस साल अपनी आजीविका कैसे चलाएंगे. अपना और अपने परिवार का पेट कैसे भरेंगे. किसानों को मिलने वाली मदद की बात करें तो अभी तक राज्य सरकार ने सूखे पर कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया है. आंकड़े बताते हैं कि अलग झारखंड बनने के बाद 2022 तक राज्य में 10 बार सूखा पड़ा है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड के किसान किस तरह से परेशान हैं.
झारखंड में आम तौर पर जून के दूसरे सप्ताह में मॉनसून प्रवेश कर जाता है और किसान खरीफ फसलें खास कर धान की बुवाई शुरू कर देते हैं. पर इस बार झारखंड में मॉनसून की एंट्री 23 जून को हुई. इसके कारण किसानों ने देर से धान की बुवाई का काम शुरू किया. हालांकि अगस्त महीने तक कई ऐसे किसान हैं जो धान की रोपाई कर रहे थे. अभी भी कई किसान हैं जो पानी के अभाव में किसी तरह सिंचाई करके धान की रोपाई कर रहे हैं. हालांकि जुलाई के बाद धान की रोपाई को आदर्श नहीं माना गया है.
झारखंड में इस बार पड़े सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी है क्योंकि इस बार हालात और भी खराब हैं. कुएं और तालाब सूखे हुए हैं. इसके कारण किसान सिंचाई करके खेती भी नहीं पा रहे हैं. जो किसान सिंचाई करके धान की रोपाई भी कर रहे हैं उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि अगर आने वाले दिन में बारिश नहीं होती है तो फिर वो कहां जाएंगे. किसान रामहरी उरांव बताते हैं कि अलग से सिंचाई करने पर प्रति एकड़ का खर्च पांच से सात हजार रुपये तक बढ़ जाता है.
ये भी पढ़ें: Jharkhand Weather: झारखंड में चारों ओर सूखा ही सूखा, 38 फीसदी धान रोपनी ने बढ़ाई किसानों की परेशानी
इस बार के सूखे के कारण सबसे अधिक धान की खेती प्रभावित हुई है. झारखंड में 18 लाख हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया था पर लक्ष्य की तुलना में मात्र 35 फीसदी क्षेत्र में ही धान की रोपाई की गई है. इसके पीछे एक कारण यह है कि पानी के अभाव में कई ऐसे किसान हैं जिन्होंने खेती ही नहीं की है. कई ऐसे किसान हैं जो पहले पांच से सात एकड़ में खेती करते थे. वो किसान इस बार सिर्फ 50 डिस्मिल तक में सिमट गए हैं. या उन्होंने खेती ही नहीं की है.
किसान इस बार इसलिए अधिक परेशान हैं क्योंकि उनके पास इस बार खाने तक के लिए धान नहीं बचा है. पिछले साल जो धान हुआ था, उसे किसानों ने या तो बेच दिया या फिर खत्म हो गए हैं. इसके कारण उनके सामने कोई विकल्प नहीं दिखाई दे रहा है. इसके कारण स्थानीय बाजार में चावल की कीमतों में भी उछाल आ गया है. अब परेशान किसान चिंतित हैं कि इस साल भी धान नहीं होगा तो पूरे साल भर परिवा का भरण पोषण कैसे करेंगे. किसान रामहरी उरांव ने बताया कि इस बार उन्हें काम करने के लिए बाहर जाना होगा. परिवार का पेट भरने के लिए उनके पास और कोई विकल्प नहीं है.
पिछली बार जब सूखा पड़ा था तब किसानों को हुए नुकसान से राहत पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री सूखाड़ राहत योजना की घोषणा की थी. योजना का लाभ लेने के लिए 33 लाख किसानों ने आवेदन किया था. उनमें में मात्र 10 लाख किसानों को ही योजना के 3500 रुपये दिए गए. जबकि 23 लाख किसानों को आज भी राहत योजना की राशि का इंतजार है. रामहरी उरांव भी उन्ही में से एक हैं जो पैसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
अगस्त महीना खत्म होने वाला है. पर अभी भी कुएं और तालाबों का जलस्तर जून महीने से भी खराब स्थिति में हैं. कई गांव ऐसे हैं जहां पर महज एक यो दो फीसदी धान की रोपाई हुई है. अब एक महीने बाद रबी फसल का समय शुरू हो जाएग जो पूरी तरह सिंचाई पर निर्भर है. ऐसे में अगर अभी भी पर्याप्त बारिश नहीं होती है तो इस बार राज्य में रबी फसल की खेती के लिए गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है. किसानों को इससे उबारने के लिए कुछ बड़े उपाय करने की जरूरत है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today