गाय-भैंस को थनेला रोग होना या नहीं होना पूरी तरह से पशुपालक के हाथ में होता है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं के शेड यानि डेयरी फार्म मैनेजमेंट जितना अच्छा होगा पशुओं के थनों से जुड़ी ये बीमारी उतनी ही दूर रहेगी. क्योंकि खासतौर से दूध देने वाले पशुओं को अगर कोई भी छोटी-बड़ी बीमारी होती है तो उसका असर सीधा पशुपालक की लागत पर पड़ता है. डेयरी सिस्टम पूरी तरह से दूध के उत्पादन पर टिका होता है. अगर उत्पादन जरा सा भी गड़बड़ होता है तो नुकसान होना तय है. डेयरी एक्सपर्ट भी मानते हैं कि डेयरी में होने वाले नुकसान के लिए सबसे बड़ी वजह थनेला बीमारी है.
एक्सपर्ट का तो यहां तक मानना है कि कभी-कभी पशुपालकों को थनेला रोग से प्रभावित अपने पशुओं को बेचने और डेयरी को बंद करने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है. पशुओं को थनेला रोग दो तरह से हो सकता है. पशु के अंदरूनी संक्रमण से और बाहरी गंदगी से. पशु को बांधने वाली जगह, पशु के शरीर, दूध के बर्तन, मच्छर, मक्खी , गोबर और धूल-मिट्टी से भी पशु को थनेला बीमारी हो सकती है. इसीलिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि दूध दुहाने से पहले पशुओं के थनों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए.
डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि दूध दुहते समय पानी, बर्तन, सीरिंज और फर्श की गुणवत्ता को लेकर अलर्ट रहें. डेयरी में काम करने वाली लेबर के गंदा रहने और उनके कपड़े इस बीमारी को और बढ़ा देते हैं. खराब खान-पान, किसी भी प्रकार का तनाव कम भी पशुओं में थनेला से लड़ने की क्षमता को कमजोर करते हैं. उनका कहना है कि इस तरह की बीमारी में इंट्रा मैमरी इन्फ्यूजन की तुलना में पैरेंटल थेरेपी ज्यादा कारगर साबित होती है.
दूध निकालने से पहले थनों की सफाई ना करना.
दूध निकालने वाले के कपड़े और हाथों के गंदा होने पर.
दूध निकालने वाला अगर बीमार है.
जिस बर्तन में दूध निकाला जा रहा उसका साफ ना होना.
गंदी जगह पर बैठकर पशु का दूध निकालना.
गाय-भैंस के बच्चे को दूध पिलाने के बाद थनों को ना धोना.
पशु के पेट, थन और पूंछ पर चिपकी गंदगी से.
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