ऐसा माना जाता है कि हलाल सर्टिफिकेट की जरूरत सिर्फ मीट कारोबार को ही होती है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलाल प्रक्रिया को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है. इस पर सुनवाई भी चल रही है. इसी पर चर्चा चल रही है कि मीट के अलावा और दूसरी चीजों को कैसे हलाल सर्टिफिकेट दिया जा सकता है. लेकिन हलाल के जानकारों की मानें तो मीट ही नहीं खाने-पीने की दूसरी चीजों को भी एक प्रक्रि या का पालन करने पर हलाल सर्टिफिकेट दिया जाता है.
जैसे भारत से दूध सर्टिफिकेट के साथ एक्सपोर्ट किया जा रहा है. यहां भी सर्टिफिकेट देने से पहले पशुपालक से लेकर डेयरी तक का मुआयना किया जाता है. मुआयने के दौरान दूध देने वाले पशु से लेकर दूध स्टोर करने और ट्रांसपोर्ट करने की पूरी प्रक्रिया जानी जाती है. एक-दो नहीं बल्कि कई दिन की प्रक्रिोया के बाद सर्टिफिकेट जारी किया जाता है.
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हरियाण की वीटा डेयरी इंडोनेशिया और मलेशिया को दूध की सप्लाई करती है. लेकिन डेयरी से जुड़े जीएम चरन जीत का कहना है कि दूध का ये ऑर्डर तभी मिला जब दूध पर हलाल की मुहर लग गई. इसके लिए हलाल सर्टिफिकेट देने वाली दिल्ली की एक संस्था से आई टीम ने हमारे प्लांट समेत और दूसरी जगहों का कई बार दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने कई चीजें देखी. तीन-चार लोगों की इस टीम ने एक बार नहीं कई-कई बार प्लांट और दूसरी जगहों का दौरा किया.
टीम ने सबसे पहले ये देखा कि दूध कहां-कहां से आ रहा है, उस पशु को खाने में क्या-क्या दिया जा रहा है. उसके बाद डेयरी में जब दूध आ जाता है तो उसे कई दिन तक रखने के लिए उसमे कोई कैमिकल तो नहीं मिलाए जा रहे हैं. कई दिन की जांच के दौरान टीम के सदस्य इस बात की तस्दीक करते हैं कि गाय या भैंस ने जैसा दूध दिया है वैसा ही कंपनी को सप्लाई किया जा रहा है. दूध की यह खासियत है कि उसे बिना किसी कैमिकल की मदद से कई दिन तक रखा भी जा सकता है और ट्रांसपोर्ट कर एक जगह से दूसरी जगह भेजा भी जा सकता है.
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