साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन कैसे किया जाए. ऑनलाइन और ऑफलाइन बकरी के दूध का बाजार कैसे तलाशें. बकरे-बकरियों को किस तरह का हरा और सूखा चारा खिलाया जाए कि मीट एक्सपोर्ट के दौरान कोई परेशानी ना आए. तीन तरह से होने वाले बकरी पालन में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कैसे कमाया जाए दो दिन तक इसी पर चर्चा होगी. और मौका होगा गोट कॉन्क्लेव का. देशभर से आए साइंटिस्ट इस बारे में अपने खास टिप्स देंगे. वहीं कामयाब बकरी पालक अपनी सक्सेस स्टोरी सुनाकर बताएंगे कि कैसे उन्होंने साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन कर बिना किसी नुकसान के कमाई शुरू कर दी थी.
कॉन्लेव का आयोजन केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा कर रहा है. इस मौके पर देश की कुछ खास नस्ल की बकरियों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी. ये पहला मौका है जब गोट कॉन्क्लेव का आयोजन होने जा रहा है. इससे पहले सिर्फ बकरी मेलों का आयोजन किया जाता था. 18 और 19 नवंबर, 2024 को कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है.
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सीआईआरजी के डायरेक्टरो डॉ. मनीष कुमार चेतली ने किसान तक को बताया कि दो दिन के गोट कॉन्क्लेव में पहला दिन साइंटिस्ट के नाम रहेगा. ये सभी लोग साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन कैसे किया जाए और कृत्रिम गर्भाधान पर बकरी पालकों को जानकारी देंगे. साथ ही बकरे-बकरियों का दाना, चारा और पीने का पानी कैसा हो इस पर भी जानकारी दी जाएगी. मौसम के हिसाब से बकरी पालन कैसे करें इस पर जागरुक किया जाएगा. साथ ही साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन करने वाले बकरी पालक अपने अनुभव भी साझा करेंगे.
बकरी के दूध-मीट के कारोबार से जुड़े लोग इसके बाजार पर चर्चा करेंगे. बकरियों के दाना-चारा तैयार करने वाली कंपनियां, दवाई बनाने वाली कंपनियां और बकरियों के लिए आवास तैयार करने वाली कंपनियां भी इस गोट कॉन्क्लेव में जुड़ेंगी. इस मौके पर ज्यादा दूध देने वाली बकरी, ब्यूटी कांटेस्ट और मसल्स पॉवर वाले बकरों की प्रतियोगिताएं भी होंगी. नबंर वन आने वाले बकरे-बकरियों के पालकों को इनाम भी दिए जाएंगे.
डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली ने बताया कि हमारा संस्थान 756 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है. यह मखूदम गांव, फरह, मथुरा में है. यहां बरबरी, जमनापारी, जखराना और बीटल नस्ल के बकरे-बकरी और मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ पालन की ट्रेनिंग दी जाती है. हमारे संस्थान में तीनों ही नस्ल के बकरे-बकरी के साथ ही भेड़ भी मौजूद है. समय-समय पर भेड़-बकरी पर रिसर्च भी होती रहती है. भेड़-बकरी पालन की अलग-अलग बैच बनाकर ट्रेनिंग भी दी जाती है. संस्थान परिसर में अलग-अलग तरह के ऐसे सैकड़ों पेड़ हैं जो चारे के रूप में बकरे-बकरियों को खिलाए जाते हैं और दवाई का काम करते हैं. हमारी बेवसाइट पर इसकी पूरी जानकारी दी जाती है.
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