गेहूं की कटाई होते ही इस साल चारे की मांग बढ़ने लगी है. हरियाणा के किसान इस साल सूखे चारे की बढ़ी मांग और कीमतों की वजह से गेहूं के अवशेष (पराली) को जलाने से परहेज कर रहे हैं. दरअसल वह पराली को न जलाकर चारा बना रहे हैं. क्योंकि पराली के प्रति एकड रेट साल भर के अंदर ही दोगुना हो गया है. पिछले साल तक गेहूं के बचे अवशेषों का दाम प्रदेश में प्रति एकड़ दो से ढाई हजार रुपये था, जो इस साल बढ़कर चार से पांच हजार रुपये प्रति एकड़ से भी अधिक हो गया है.
इसी तरह उससे बने चारे का रेट प्रति डंपर जो पिछले साल चार हजार के आसपास था. वह बढ़कर 5 हजार से अधिक हो गया है. इसका परिणाम यह होगा कि इस बार प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आएगी, जिससे वातावरण में थोड़ा सुधार होगा. साथ ही प्रदूषण में भी गिरावट आएगी.
पिछले साल 20 अप्रैल तक हरियाणा में 118 जगहों पर पराली जलाई गई थी, जबकि इस साल के आंकड़ों के अनुसार अभी तक 91 जगहों पर पराली जलाई गई है. हालांकि गेहूं के पराली जलाने का यह पहला स्टेज है. क्योंकि अभी प्रदेश में बहुत जगह गेहूं की कटाई बाकी है.
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इन दिनों प्रदेश में रोजाना 8 से 10 जगहों पर गेहूं की पराली में आग लगाई जा रही है. 20 अप्रैल को प्रदेश में 8 जगहों पर पराली जलाई गई. प्रदेश में सबसे अधिक पराली जलाने के मामले में सिरसा आगे हैं. यहां अब तक 29 जगहों पर पराली जलाई गई है. जबकि पिछले साल यहां सिर्फ पांच जगह ही पराली जलाई गई थी. इसी तरह से राज्य के कुछ जिले जैसे, करनाल जींद, कैथल और कुरुक्षेत्र जहां पिछले साल सबसे अधिक गेहूं की पराली जलाई गई थी. वहां इस साल बहुत कम पराली जलाने की घटनाएं सामने आई हैं.
कृषि उपनिदेशक, कैथल, डॉ. कर्मचंद ने बताया कि हरियाणा में गेहूं की पराली जलाने में आई कमी का सबसे बड़ा कारण किसानों की बढ़ती जागरूकता है. वहीं साथ में पशुओं के लिए सूखे चारे की मांग बढ़ना है. क्योंकि सूखा चारा इस साल काफी महंगा हो गया है. इसके कारण किसान गेहूं के पराली में आग न लगाकर उसका चारा बना रहे हैं. पिछले सालों में गेहूं की हाथ से कटाई होती थी और फिर थ्रेसिंग करने पर अच्छा चारा बनता था. जो प्रति एकड़ ज्यादा निकलता था, लेकिन अब प्रदेश में अधिकांश गेहूं की कटाई कंबाइन से होने के कारण प्रति एकड़ गेहूं से होने वाले चारे का उत्पादन में कमी आई है. इसके चलते चारा की डिमांड बढ़ गई है.
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