24 घंटे पानी में रहने वाली मछलियों को भी सर्दी के मौसम में ठंड लगती है. ठंड लगने से मछलियां बीमार होती हैं. बेशक सुनने में यह बात अटपटी लगती हो, लेकिन यह सौ फीसद सच है. दिसम्बर से जनवरी तक मछलियों को ज्यादा ठंड लगती है. इस दौरान मछलियों को बीमारी से बचाने के लिए मछली पालकों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. मछलियां भी ठंड से बचने के लिए तालाब में अपनी जगह बदल लेती हैं. साथ ही मछली पालक भी ठंड दूर करने के लगातार उपाय करते हैं.
नदी, समुद्र और झील का पानी चलता हुआ होता है, इसलिए दिसम्बर-जनवरी में भी इनका पानी सामान्य रहता है. इस पानी में मछलियां भी आराम से रह लेती हैं. लेकिन तालाब का रुका हुआ पानी सर्दियों में जल्दी ठंडा हो जाता है. जिसके चलते मछलियां परेशानी में आकर बीमार तक हो जाती हैं. ऐसे में मछली पालक तालाब में कई तरह की दवाईयों का छिड़काव करते हैं.
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यूपी के मछली पालक उमेर जादौन का कहना है, तालाब का पानी रुका हुआ होता है. जिसके चलते सर्दी के मौसम में यह जल्दी ठंडा हो जाता है. ज्यादातर तालाब खुले में होते हैं तो पानी और जल्दी ठंडा हो जाता है. ठंडे पानी से मछलियों को परेशानी होने लगती है. ऐसे में सुबह-शाम मछलियों को पम्प की मदद से अंडर ग्राउंड वाटर से नहलाया जाता है. जमीन से निकला पानी गुनगुना होता है. इसलिए तालाब के ठंडे पानी में मिलकर यह पूरे पानी को सामान्य कर देता है. दिसम्बर से जनवरी के दौरान जब भी ऐसा लगता है कि तालाब का पानी कुछ ज्यादा ही ठंडा हो रहा है तो उसमे जमीन से निकला पानी मिला दिया जाता है. लेकिन बड़े तालाब में जमीन से निकला पानी मिलाना आसान नहीं होता है. इसलिए बड़े तालाबों में जाल डालकर उस पानी में उथल-पुथल कर काफी हद तक सामान्य कर दिया जाता है. इसी तरह से गर्मियों में भी तालाब के पानी को ठंडा रखने के लिए यह कवायद की जाती है.
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मछली पालक एमडी खान बताते हैं कि जैसे ही मछलियों को तालाब का पानी ठंडा लगने लगता है तो वो तालाब की तली में ज्यादा रहना पसंद करती हैं. क्यों कि तालाब की ऊपरी सतह का पानी ठंडा होता है और तली का पानी सामान्य होता है. लेकिन तालाब की तली में ज्यादा वक्त बिताने के चलते मछलियों में कई तरह की बीमारी भी होने लगती है. लाल धब्बा इसमे खास बीमारी है. इसीलिए जब दिसम्बर से जनवरी के दौरान मछलियां ऊपरी सतह पर कम दिखाई दें तो समझ जाना चाहिए कि तालाब में उन्हें ठंड लग रही है.
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