देश के ज्यादातर बाजारों में कपास की कीमत उसकी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक है. इसलिए किसान निजी क्षेत्र को कपास बेचना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. वही कई राज्यों के कपास उत्पादक किसानों ने सरकार से कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि की मांग की है. जिस पर केंद्र सरकार ने कहा है कि वह कपास के उत्पादन को देख रहा है और उसके अनुसार निर्णय लेगा. ऐसे में आइए जानते हैं क्या पूरा माजरा-
खबरों के मुताबिक, केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि, “अभी राज्यों में कीमतें कपास के एमएसपी से अधिक हैं. कीमतों में गिरावट आने पर एमएसपी पर खरीद शुरू हो जाएगी. इस समय, यह जरूरी नहीं है, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो हम एमएसपी पर खरीद शुरू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.” हालांकि किसानों का कहना है कि उन्हें अपनी उपज के लिए एमएसपी से बहुत अधिक कीमत मिली, लेकिन बीज, कीटनाशक और उर्वरक की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए यह कम था.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2022-23 कपास वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के लिए एमएसपी मध्यम स्टेपल के लिए 6,080 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है.
खबरों के मुताबिक, सभी प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में कपास की मंडियों में औसत कीमत एमएसपी से कहीं अधिक है. लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक नवंबर की तुलना में 1-21 दिसंबर के दौरान ज्यादातर राज्यों में कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव है और कीमतों में गिरावट आई है.
उदाहरण के लिए, श्री करनपुर में बीटी कपास की मंडी की कीमतें 9,450 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ीं, जो इस साल 12 नवंबर को सबसे अधिक थी और 20 दिसंबर को गिरकर 7,800 रुपये के निचले स्तर पर आ गई और 21 दिसंबर को बढ़कर 8,450 रुपये हो गई.
अखिल भारतीय किसान सभा के महाराष्ट्र सचिव, अजीत नवाले के मुताबिक, "महाराष्ट्र में, कुछ किसानों को 12,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिला है. वही वैश्विक स्थिति के कारण कपास कीमतें अच्छी हैं. आयात कम हुआ है और यही कारण है कि किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है.
हम मांग करते रहे हैं कि किसी भी कीमत पर कपास के आयात पर रोक लगाई जानी चाहिए. इसके साथ ही कपास बीजों का आयात भी बंद किया जाए. कपास के बीजों की भी अच्छी मांग और कीमत है, क्योंकि इसका इस्तेमाल मवेशियों और पोल्ट्री फीड के रूप में किया जाता है."
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