बदलाव छोटा हो या बड़ा, वो तरक्की के रास्ते जरूरत खोलता है. ऐसा ही कुछ सी फूड इंडस्ट्री में भी हुआ है. बात ज्यादा पुरानी नहीं है, एक्सपोर्ट मार्केट में ड्राई फिश (सूखी मछली) की खूब डिमांड थी. लेकिन भारत की सूखी मछली खरीदने को कोई तैयार नहीं होता था. वजह थी हमारे देश में मछली सुखाने के तौर-तरीके पुराने थे और एक्सपोर्ट के मानकों पर हमारी सूखी मछली फेल हो जाती थी. लेकिन जैसे ही मछली सुखाने के तरीके बदले गए, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPHET), लुधियाना समेत दूसरे संस्था़नों ने नई-नई टेक्नोलॉजी तैयार की तो छोटे से छोटे मछुआरों ने भी साइंटीफिक तरीके से मछली सुखाना शुरू कर दिया.
इसी का नतीजा है कि साल 2022-23 में देश ने 5.5 हजार करोड़ रुपये की सूखी मछली का एक्सपोर्ट किया है. बड़ी बात ये है कि एक ही साल में भारत ने इस आंकड़े को डबल पर पहुंचा दिया है. ये आंकड़ा मत्स्य-पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने जारी किया है. मंत्रालय का कहना है कि इस आंकड़े में ड्राई झींगा एक्सपोर्ट के आंकड़े शामिल नहीं हैं.
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मंत्रालय की ओर से जारी की गई रिपोर्ट की मानें तो सूखी मछली का एक्सपोर्ट डबल से ज्यादा बढ़ा है. अगर रुपये में बात करें तो 5503 करोड़ रुपये की सूखी मछली एक्सपोर्ट की गई है. साल 2021-22 के मुकाबले इस आंकड़े में 58.51 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. और अगर मात्रा के हिसाब से बात करें तो 62.65 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
सी फूड इंडस्ट्री के लिए ये एक बड़ी खुशखबरी है. इसके चलते अब ज्यादा से ज्या़दा लोग महंगी कीमत पर कोल्ड में मछली को रखने के बजाए कम लागत पर उसे सुखाकर बेचना पसंद करेंगे. ड्राई आइटम में कटलफिश, सुरमी और आक्टोपस आदि हैं.
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मंत्रालय ने यह भी बताया है कि साल 2022-23 में कुल 13.69 मीट्रिक टन सी फूड एक्सपोर्ट किया गया है. इसकी कुल कीमत 57 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. मंत्रालय का कहना है कि ये अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. गौरतलब रहे कि सोलर ड्रायर और दूसरे तरीके इस्तेमाल होने के बाद ड्राई फिश की क्वालिटी में फर्क आया है.
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