भैंस पालने का असली मकसद ही यही होता है कि वो जितना ज्यादा दूध देगी तो मुनाफा भी उतना ज्यादा ही होगा. भैंस के बच्चे को भी पशुपालक इसी चाहत में बड़ा करता है कि बड़े होते ही ये दूध देने लगेगा. बाजार में भैंस खरीदते वक्त भी पशुपालक यही देखता है कि भैंस दूध कितना दे रही है. यहां तक की उसके परिवार के बारे में भी पूरी जानकारी कर लेता है. लेकिन जब उसी का दूध एकदम से कम होने लगे तो पशुपालक की परेशानी बढ़ जाती है.
जिसका सीधा असर पशुपालक के मुनाफे पर पड़ता है. लागत भी ज्यादा हो जाती है. और ये सब होता है बुखार के चलते. हालांकि सुनने में ये मामूली बुखार लग रहा है, लेकिन इसे मिल्क फीवर कहा जाता है. इसके चलते पशु का दूध तो कम होता ही है, साथ में पशु की हैल्थ पर भी इसका गहरा असर पड़ता है. एनीमल एक्सपर्ट का कहना है कि मिल्क फीवर की वजह एक मामूली सी लापरवाही है.
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मिल्क फीवर होने पर भैंस का शरीर ठंडा पड़ जाता है.
भैंस को कमजोरी महसूस होने लगती है.
कमजोरी के चलते भैंस खड़े होने के बजाए बैठी रहती है.
मिल्क फीवर में भैंस अपनी गर्दन कोख के उपर रख लेती है.
मिल्क फीवर में भैंस जुगाली करना बंद कर देती है.
बीमारी के चलते भैंस अक्सर सूखा गोबर करती है.
भैंस को कंपकपी महसूस होती है और बेहोशी छायी रहती है.
मिल्क फीवर के लक्षण दिखाई दें तो करें ये काम
डॉक्टर की सलाह पर कैल्शियम की बोतल लगवानी चाहिए.
कैल्शियम की कुल मात्रा का आधा भाग खून में और आधा भाग चमड़ी के नीचे लगेगा.
डॉक्टर से पूछ कर चमड़ी के नीचे लगे इंजेक्शन की जगह सिकार्इ करनी चाहिए.
बीमारी की रोकथाम के लिए भैंस को मिनरल सॉल्ट खिलाएं.
ब्याने के 2-3 दिन बाद तक सारा दूध एक साथ न निकालें, दूध थनों में छोड़ते रहें.
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