देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के बाद पशुपालन के बिजनेस को आमदनी का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है. उसमें भी गौ पालन किसानों और पशुपालकों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. गाय से ना सिर्फ दूध, बल्कि खेती के लिए गोबर भी मिलता है जो कि खाद के काम आता है और इसके इस्तेमाल से खेती की लागत में भी कमी आती है, जिस वजह से गाय पालन की ओर हर वर्ग के किसानों का रुझान काफी तेजी से बढ़ रहा है. अगर आप गाय की अधिक दूध देने वाली देसी नस्ल की तलाश में हैं तो आप इन पांच गाय का पालन कर सकते हैं. ये गायें अन्य देसी गायों की तुलना में काफी अधिक मात्रा में दूध देती हैं.
1-सिरोही नस्ल: सिरोही गाय की पहचान ये है कि इसकी ऊंचाई लगभग 120 सेमी तक होती है. वहीं, इस नस्ल की गाय अधिकांश सफेद या भूरा-सफेद रंग की होती है. इस गाय की विशेषता ये है कि ये एक ब्यांत में औसतन 1600 लीटर तक दूध देती है. इस गाय के दूध में 4.64 प्रतिशत फैट पाया जाता है. वहीं ये गाय प्रतिदिन लगभग 10 से 12 लीटर दूध देती है.
2-मेवाती नस्ल: अगर आप गौ पालन करना चाहते हैं तो मेवाती गाय की नस्ल को पाल सकते हैं. इस गाय की पहचान ये है कि ये आमतौर पर सफेद रंग की होती है. इनकी ऊंचाई 125 सेमी होती है. सींग आकार में छोटे से मध्यम होते हैं. इसके अलावा चेहरा लंबा, माथा सीधा, कभी-कभी थोड़ा उभरा हुआ होता है. साथ ही इस गाय के थन पूरी तरह विकसित होते हैं. वहीं, इस गाय की विशेषता ये है कि ये एक ब्यांत में औसतन 900 से 1000 लीटर दूध देती है. इसके अलावा इस नस्ल की गाय प्रतिदिन लगभग 5 से 7 लीटर दूध देती हैं.
3-थारपारकर नस्ल: गाय की देसी नस्ल थारपारकर भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है. थारपारकर का नाम इसके उत्पत्ति स्थल यानी थार रेगिस्तान से लिया गया है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के मुताबिक थारपारकर नस्ल की गाय औसतन एक ब्यांत में 1700 लीटर तक दूध देती है. वहीं, इस नस्ल की गाय हर रोज 12 से 16 लीटर तक दूध देती है.
4-राठी नस्ल: देशी नस्ल के गायों में राठी नस्ल की गाय काफी दुधारू नस्ल मानी जाती है. इस नस्ल की खासियत ये है कि ये देश के किसी भी क्षेत्र में रह लेती है. राठी गाय को 'राजस्थान की कामधेनु' भी कहते हैं. वहीं, राठी नस्ल की गाय प्रतिदिन लगभग 7 से 12 लीटर तक दूध देती है, जबकि, अच्छी देखभाल और खानपान होने पर 18 लीटर तक भी दूध दे सकती है.
5-लाल कंधारी नस्ल: लाल कंधारी नस्ल छोटे किसानों के लिए बहुत लाभकारी गाय है, क्योंकि इसकी देखभाल में ज्यादा लागत नहीं आती है और इसे खिलाने के लिए हमेशा हरे चारे की जरूरत भी नहीं पड़ती है. ऐसा मानते हैं कि गाय की इस नस्ल को चौथी सदी में कांधार के राजाओं द्वारा विकसित किया गया था. इसे लखाल्बुन्दा भी कहा जाता है. वहीं, लाल कंधारी गाय प्रतिदिन 4 से 6 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
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