पशुपालन में सबसे तेजी से बकरी पालन बढ़ रहा है. नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के तहत लोन की सुविधा के लिए सबसे ज्यादा आवेदन बकरी पालन के लिए आ रहे हैं. ऐसा सरकारी आंकड़ा बताता है. बकरे के मीट ही नहीं अब बकरी के दूध की डिमांड भी बढ़ रही है. दवाई के तौर पर भी बकरी का दूध इस्तेमाल होने लगा है. दूध से बने चीज की डिमांड तो और भी ज्यादा है. दूध की इसी डिमांड को पूरा करने के लिए बकरियों की एक खास नस्ल का जिक्र हमेशा होता है. एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो ये गाय से ज्यादा दूध देती है.
फायदे की बात ये है कि गाय के मुकाबले इसे खाने में कम चारा चाहिए होता है. ये खास नस्ल मूल रूप से पंजाब की है. हालांकि हरियाणा में भी इसे पाला जाता है. पंजाब की इस बकरी को दूसरे प्रदेश के लोग भी पालने के लिए ले जाते हैं. बीटल नस्ल की इस बकरी के बारे में बिहार एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (बासु), पटना, बिहार के वाइस चांसलर डॉ. इन्द्रजीत सिंह भी कई खूबियां गिनाते हैं.
वीसी डॉ. इन्द्रजीत सिंह की मानें तो बीटल नस्ल की बकरी प्रति दिन 5 लीटर तक दूध देती है. जबकि देसी गाय के दूध का एवरेज 2.5 से तीन लीटर प्रति दिन है. गाय को रोजाना सात से आठ किलो सूखा चारा चाहिए, जबकि बकरी के लिए दिनभर में ज्यादा से ज्यादा दो से ढाई किलो चाहिए होता है. बीटल बकरी साल में दो बार बच्चे देती है. एक बार में बकरी दो से तीन बच्चे तक देती है. जबकि गाय बकरी के इस मुकाबले में कहीं नहीं है.
अगर कोई परिवार घर में दूध की डिमांड पूरी करने के लिए बीटल बकरी को पाल लेता है तो उसका दूध पर होने वाला खर्च बहुत ही कम हो जाएगा. दूसरी ओर अगर कोई बीटल बकरी को दूध का कारोबार करने के लिहाज से पालता है तो वो भी अच्छी कमाई कर सकता है. क्योंकि आज बकरी के दूध की डिमांड को देखते हुए उसकी कोई एक कीमत तय नहीं है. डेंगू बीमारी के दौरान बकरी के दूध की बहत डिमांड रहती है. बीमारी में फायदा लेने के लिए लोग मोटी रकम खर्च कर बकरी का दूध पीते हैं.
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