गाय-भैंस का पालन खासतौर पर दूध के लिए किया जाता है. और गाय-भैंस से मिलने वाला बच्चा बोनस होता है. जब गाय-भैंस बच्चा देती है तो उससे बाड़े में मौजूद पशुओं की संख्या बढ़ जाती है. लेकिन इसके साथ ही पशुपालक चाहें छोटा हो या बड़ा, सबकी एक ही ख्वाहिश होती है कि उसकी गाय-भैंस ज्यादा और अच्छी फैट वाला दूध दें. साथ ही जब भी बच्चा दें तो वो हेल्दी हो. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो पशुपालक एक गाय-भैंस से जो उम्मीद करते हैं वो सब मुमकिन है.
लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उनकी दिनभर की खुराक में वो पांच चीजें जरूर शामिल की जाएं जो गाय-भैंस को हेल्दी रखने के साथ ही उनके उत्पादन को भी बढ़ाती हैं. अक्सर पशुपालक ये गलती करते हैं कि पशुओं को हरा चारा ज्यादा खिलाते हैं, वो सोचते हैं कि हरा चारा ज्यादा देने से दूध मे पौष्टिनकता आएगी. लेकिन ये सोच गलत है. ऐसा करने से दूध की क्वालिटी खराब होती है. वहीं गाय-भैंस को पेट संबंधी कई तरह की बीमारियां भी हो जाती हैं.
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कार्बोहाइड्रेट शरीर को एनर्जी देता है. और अच्छी बात ये है कि पशुओं के चारे में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा होती है. यह हरा चारा, भूसा, कड़वी और मिनरल मिक्चर में खूब पाया जाता है.
प्रोटीन शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाने में अहम रोल निभाता है. शरीर के मसल्स को ताकत प्रोटीन से ही मिलती है. इतना ही नहीं शरीर की ग्रोथ, गर्भ में पल रहे बच्चे की ग्रोथ और दूध उत्पादन के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी होता है. अगर पशु के लिए प्रोटीन की बात करें तो ये खासतौर पर खल, दालों, फलीदार चारे जैसे बरसीम, रिजका, लोबिया, ग्वार आदि से मिलता है.
पानी में न घुलने वाले चिकने पदार्थ जैसे घी, तेल आदि को वसा कहा जाता है. शरीर के लिए वसा बहुत जरूरी होता है. वसा खासतौर पर त्वचा के नीचे या अन्य स्थानों पर जमा होकर एनर्जी स्टोर के रूप में काम करता है. भोजन की कमी के दौरान वसा ही एनर्जी की पूर्ति करता है. इसलिए पशु की खुराक में करीब तीन से पांच फीसद वसा जरूर शामिल करना चाहिए. पशु को वसा चारे और दाने से आसानी से मिल जाता है. पशु को अलग से वसा देने की जरूरत नहीं है. वसा खासतौर पर बिनौला, तिलहन, सोयाबीन और अलग-अलग तरह की खल से मिल जाता है.
पशु की दिनभर की सामान्य क्रियाशीलता (एक्टिाविटी) के लिए उसे कई तरह के विटामिनों की जरूरत पड़ती है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि पशु को ये विटामिन आमतौर पर हरे चारे से भरपूर मात्रा में मिल जाते हैं. जैसे विटामिन बी पशु के पेट में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है. दूसरे विटामिन जैसे ए, सी, डी, र्इ और के पशुओं को चारे और दाने से मिल जाते हैं. अगर विटामिन की कमी से होने वाली बीमारियों की बात करें तो विटामिन ए की कमी से भैंसो में गर्भपात हो जाता है, अंधापन, चमड़ी का सूखापन, भूख की कमी, हीट में न आना और गर्भ का न रूकना जैसी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं.
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खनिज लवण (मिनरल सॉल्ट) खासतौर पर हड्डियों, दांतों की बनावट और उन्हें मजबूती देने के काम आता है. दूध में फैट और एसएनएफ बढ़ाने में भी मिनरल मिक्चर अहम रोल निभाते हैं. इनकी कमी से शरीर में कर्इ प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं. कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, गंधक, मैग्निशियम, मैगनीज, लोहा, तांबा, जस्ता, कोबाल्ट, आयोडीन, सेलेनियम आदि पशु शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं. दूध उत्पादन की हालत में भैंस को कैल्शियम और फास्फोरस की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. प्रसूति काल में इसकी कमी से पशु को मिल्क फीवर भी हो सकता है. दूध उत्पादन भी घट सकता है. बच्चे देने की दर में भी कमी आ सकती है. कैल्शियम की कमी के चलते गाभिन भैंस फूल दिखा सकती है.
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