35 टन 'गोबर' से रोशन होती है मथुरा की गौशाला, गायों के किचिन को भी मिलती है एनर्जी  

35 टन 'गोबर' से रोशन होती है मथुरा की गौशाला, गायों के किचिन को भी मिलती है एनर्जी  

35 टन गोबर से रोशन होने वाली गौशाला 275 एकड़ एरिया में बनी हुई है. यहां लगभग 60 हजा गायों की सेवा की जाती है. श्रीमाताजी के नाम से इस गौशाला का संचालन पदमश्री रमेश बाबा मथुरा में कर रहे हैं.

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35 टन 'गोबर' से रोशन होती है मथुरा की गौशाला, गायों के किचिन को भी मिलती है एनर्जी  मथुरा की श्रीमाता गौशाला में बना बॉयो गैस प्लांट.

मथुरा के बरसाना में बनी श्रीमाताजी गौशाला गायों की एक अलग ही दुनिया की शक्ल में नजर आती है. गायों का शेड, गायों का अस्पाताल, गायों की किचिन समेत सब कुछ गायों को समर्पित नजर आता है. गायों की सेवा के लिए यहां कर्मचारियों की एक पूरी फौज काम करती है. गायों के गोबर से बनी बायो गैस से गौशाला रात में रोशन होती है तो बीमार गायों की किचिन में उनका खाना भी गोबर से बनी गैस पर बनता है. जिसके लिए गौशाला में एक बड़ा बायो गैस प्लांट लगाया गया है.  

एक्सपर्ट की मानें तो आजकल गोबर से बायो सीएनजी भी बनाई जा रही है. 40 टन गोबर की क्षमता वाले किसी भी प्लांट में 750 से 800 किलो तक सीएनजी तैयार की जा रही है. इस तरह का एक प्लांट गुजरात में अमूल कंपनी भी चला रही है. हरियाणा की वीटा डेयरी कंपनी भी नारनौल में एक ऐसा ही प्लांट जल्द शुरू करने जा रही है. अच्छी बात यह है कि गोबर से सीएनजी बनाने के साथ ही बचे हुए लिक्विड गोबर से आर्गनिक डीएपी भी बनाई जा सकती है .  

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गोबर से 9 घंटे तक चलते हैं गौशाला के जनरेटर

गौशाला के सेवादार ब्रजेन्द्र शर्मा ने किसान तक को बताया कि गौशाला में इस वक्त 60 हजार के करीब गाय हैं. गौशाला से हर रोज लगभग 35 टन गोबर निकलता है. यह गोबर गौशाला में बने बायो गैस प्लांट पर पहुंचाया जाता है. प्लांट पर इस गोबर से गैस बनाई जाती है. इसी गैस से गौशाला में लगे 50-50 किलोवाट के दो जनरेटर चलते हैं. प्लांट पर मौजूद टेक्निशियन के मुताबिक 35 टन गोबर से बनी गैस से दो जनरेटर नौ से 10 घंटे तक चल जाते हैं. जब भी बिजली गुल होती है तो जनरेटर को गैस से चला दिया जाता है. 

गोबर गैस पर ही बनता है 500 बीमार गायों का खाना 

सेवादार ब्रजेन्द्र शर्मा ने बताया कि अस्पताल में हर वक्त करीब 500 बीमार गाय-बैल और बछड़े भर्ती रहते हैं. यह वो हैं जो सामान्य चारा नहीं खा सकते हैं. इनके लिए खासतौर पर मौसम के हिसाब से दलिया बनाया जाता है. सर्दी में ज्वार, बाजरा आदि का बनता है तो गर्मियों में जौ और गेहूं का दलिया बनता है. चार बड़े-बड़े कड़ाहो में यह दलिया बनता है. इनकी भट्टी जलाने के लिए भी गोबर गैस का इस्तेमाल किया जाता है. 

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गोबर से जल्द सीएनजी बनाएगी गौशाला 

सेवादार ब्रजेंद्र शर्मा के मुताबिक गौशाला का अडानी की कंपनी से समझौता हुआ है. समझौते के तहत गौशाला ने कंपनी को जमीन दी है. साथ ही हर रोज गौशाला से निकलने वाला टनों गोबर भी दिया जाएगा. इसके बदले कंपनी जमीन का किराया और गोबर का भुगतान करेगी. इतना ही नहीं गोबर से बनी सीएनजी बेचने के बाद जो पैसा आएगा उसमे से कुछ हिस्सा कंपनी गायों की सेवा पर भी खर्च करेगी. प्लांट को तैयार करने में करीब 200 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. 

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