देश ही नहीं विदेश में भी सूखी मछली की बहुत डिमांड है. जहां मछली आसानी से नहीं मिलती है या कम मिलती है वहां सूखी मछली के बाजार में तमाम मौके हैं. लेकिन सूखी मछली में क्वालिटी न होने के चलते उसके सही रेट नहीं मिल पाते हैं. इसके चलते लोग सूखी मछली के कारोबार में कम ही आ रहे हैं. ज्यादा मछली उत्पादन का यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है. यह कहना है डिपार्टमेंट ऑफ फिशरीज के सचिव जतींद्र नाथ स्वैन का. विभाग की ओर से आयोजित एक बेविनार में बोलते हुए उन्होंने बताया कि हमारे मछली सुखाने के पुराने तरीकों को अपनाने के चलते क्वालिटी नहीं आ रही है.
फूड प्रोसेसिंग यूनिट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. सीओ मोहन ने बेविनार में मौजूद लोगों को जानकारी देते हुए बताया कि प्रोटीन के मामले में मछली बेहतरीन सोर्स है. अगर सूखी मछली के बारे में बात करें तो झींगा, एंकोवी, सार्डिन, क्रोकर, मैकेरल, बॉम्बे डक आदि मछली को सुखाकर खाने में बहुत पसंद किया जाता है. भारत से सिंगापुर, श्रीलंका और आसियान, मध्य पूर्व देशों में सूखी मछली का एक्सपोर्ट किया जा रहा है.
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी एंड ट्रेनिंग के डायरेक्टर डॉ. शाइन कुमार सीएस ने बताया कि भारत सूखी मछली एक्सपोर्ट के बाजार में नीचे है. लेकिन डिमांड के चलते इसमें उछाल आने के जबरदस्त आसार हैं. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि इंटरनेशनल मार्केट में कदम जमाने के लिए सूखी मछली की क्वालिटी पर काम करना होगा. मछली सुखाने के पुराने तौर-तरीकों को बदलना होगा.
डॉ. सीएस कहते हैं, खुले में मछली सुखाने से उसकी क्वालिटी पर असर पड़ता है. इसे बदलना होगा. बेविनार में यह भी बताया गया कि बाजार में मौजूद अतिरिक्त दूध ने जैसे दूध पाउडर जैसे प्रोडक्ट को जन्म दिया है, ठीक उसी तरह से मछली उत्पादन से सूखी मछली के बाजार को बढ़ावा मिल सकता है.
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वहीं सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPHET) के साइंटिस्ट और फिशरीज डिपार्टमेंट से जुड़े डॉ. अरमान मुजद्दादी ने बताया कि असम में सूखी मछली का बड़ा बाजार है. इसी बाजार से पूरे नॉर्थ-ईस्ट में सूखी मछली सप्लाई होती है. देश के सूखी मछली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा इसी बाजार में खप जाता है.
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