बाजार में जमनापारी और जखराना बकरे-बकरियों की डिमांड बढ़ गई है. फोटो क्रेडिट-किसान तकWinter Goat Care छोटे पशु जैसे भेड़-बकरियों को सर्दियों में बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. खानपान के साथ ही खुराक में भी जरूरी बदलाव करने होते हैं. वहीं एनिमल एक्सपर्ट ये भी सलाह देते हैं कि ठंड के मौसम में कुछ खास बीमारियां बकरे-बकरियों पर अटैक करती हैं. इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते बकरियों को दो खास टीके लगवा लिए जाएं. क्योंकि कुछ ऐसी बीमारी होती हैं जो ठंड के मौसम में ही सबसे ज्यादा परेशान करती हैं. अगर इस मौसम में बकरियों को दो खास टीके नहीं लगवाएं तो बकरियों के बाड़े में भी ये दोनों बीमारियां फैल सकती है.
और ये दोनों ही बीमारी जानलेवा होती है. बकरी से ज्यादा दूध और मीट के लिए बकरे का वजन बढ़ाना, किसी भी पशुपालक की इन दो चीजों पर नजर रहती है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बकरे-बकरी हर तरह के मौसम में तनाव मुक्त रहें. और इसके लिए दो काम करना एक पशुपालक के लिए बहुत जरूरी होते हैं. पहला मौसम के मुताबिक शेड में बदलाव और पशुओं को बीमारी से बचाना.
एनिमल एक्सपर्ट डॉ. इब्ने अली का कहना है कि पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स) बकरियों में होने वाली घातक बीमारी है. इसे बकरियों का प्लेग भी कहा जाता है. ये एक संक्रमित रोग है तो जल्द ही ये दूसरी बकरियों में भी बहुत तेजी से फैलती है. इसके साथ ही इसी मौसम में बकरियों के बीच चेचक भी फैलती है. चेचक के दौरान बकरियों के शरीर पर चकते से बन जाते हैं. इसलिए ये जरूरी है कि सर्दी शुरू होते ही बकरियों को पीपीआर और चेचक का टीका लगवा दिया जाए. अगर पशुपालकों ने अभी तक ये दोनों टीके नहीं लगवाए हैं तो लगवाने में जरा भी देर ना करें. क्योंकि ये बीमारी किसी एक बकरी में हो जाए तो फिर बार्ड की दूसरी बकरियों के बीच तेजी से फैलती है.
डॉ. इब्ने अली बताते हैं कि बकरी में होने वाले प्लेग की पहचान यह है कि बकरी को दस्त लग जाते हैं. निमोनिया होता है और नाक बहने लगती है. तेज बुखार आ जाता है. बड़ी बकरियों में होने के चलते ये बीमारी बच्चों में भी फैलने लगती है. इसी तरह से बकरी को चेचक होने पर निमोनिया होता है और तेज बुखार आने लगता है. बकरी चारा खाना छोड़ देती है. और तो और बच्चे भी दूध पीना कम कर देते हैं.
डॉ. इब्ने अली का कहना है कि बकरी प्लेग-चेचक का सबसे बड़ा उपाय तो यही है कि हम प्लान के मुताबिक बकरियों को प्लेग-चेचक के टीके लगवाते रहें. क्योंकि टीके लगवाने का खर्च जहां बहुत ही मामूली होता है और सरकारी केन्द्रों पर तो यह फ्री में भी लग जाते हैं. वहीं अगर यह बीमारी बकरियों को लग जाए तो इलाज में काफी पैसा खर्च हो जाता है. साथ ही एक जरूरी कदम यह भी उठाएं कि अगर बकरी को प्लेग या चेचक हो जाए तो उसे फौरन ही दूसरी बकरियों से अलग कर दें.
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