बकरीद के मौके पर बकरों की कुर्बानी दी जाती है. इसी के चलते खासतौर पर दो महीने तक बाजार में बकरों की भारी डिमांड रहती है. अच्छी नस्ल के और सेहतमंद बकरों की बहुत डिमांड होती है. ऐसे बकरों के खरीदार मुंह मांगे दाम देने को भी तैयार रहते हैं. जानकारों की मानें तो बकरीद पर बिकने वाले बकरों से मुनाफा भी तगड़ा होता है. लेकिन लोगों के बीच धारणा ये है कि पशु पालन सिर्फ गांव-देहात में ही किया जा सकता है. क्योंकि शहर में तो पशुओं को चराने के लिए जगह ही नहीं है. खासतौर पर बकरा पाला तो बिना हरे चारे के वो पल ही नहीं पाएगा.
बिना मैदान में जाए तो मोटा-ताजा नहीं बनेगा. जबकि ये धारणा एकदम गलत है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा की बकरों की कुछ खास नस्ल और चारे पर हुई रिसर्च के बाद अब बकरों को खूंटे से बांधकर भी पाला जा सकता है. अगर इसके लिए सीआईआरजी की गाइड लाइन का ही पालन कर लिया जाए तो घर के आंगन में या छत पर पालकर भी बकरीद पर बकरों से मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है.
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सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट और बरबरी नस्ल के एक्सपर्ट एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि बरबरी नस्ल के बकरे-बकरी को शहरी नस्ल भी कहा जाता है. अगर आपके आसपास चराने के लिए जगह नहीं है तो इसे खूंटे पर बांधकर या छत पर भी पाला जा सकता है. अच्छा चारा खिलाने से इसका वजन 9 महीने का होने पर 25 से 30 किलो, एक साल का होने पर 40 किलो तक हो जाता है. अगर सिर्फ मैदान या जंगल में चराई पर ही रखा जाए तब भी एक साल का बकरा 25 से 30 किलो का हो जाता है.
सीआईआरजी में बकरी पालन मैनेजमेंट के गुर सिखाने वाले डॉ. गोपाल दास ने किसान तक को बताया कि बकरियों में कुछ नस्ल ऐसी हैं जिन्हें फार्म में रखकर भी पाला जा सकता है. जैसे बरबरी, सिरोही और सोजत नस्ल के बकरे और बकरियों को फार्म में पालकर बेहतर रिजल्ट लिए जा सकते हैं. बरबरी नस्ल के बकरे और बकरियों को तो टाउन गोट यानि शहर की बकरी भी कहा जाता है. फार्म में रखकर स्टाल फीड देने से ही तीनों नस्ल के बकरे ज्यादा वजन तक के हो जाते हैं.
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सीआईआरजी के फीड एक्सपर्ट डॉ. रविन्द्र का कहना है कि बकरी पालन में अब तो यह परेशानी भी नहीं रही है कि फार्म और घर में रखकर सूखे, हरे और दानेदार चारे का अलग-अलग इंतजाम करना पड़े. सीआईआरजी ने चारे की फील्ड में कई ऐसी रिसर्च की है कि जिसके बाद आपको बकरी के लिए तीन तरह के अलग-अलग चारे का इंतजाम करने की जरूरत नहीं है. संस्थान के साइंटिस्ट ने हरे, सूखे और दाने वाले चारे को मिलाकर पैलेट्स तैयार किए हैं. जरूरत के हिसाब से बकरे और बकरियों के सामने पैलेट्स रख दिजिए, जब पानी का वक्त हो जाए तो पानी पिला दिजिए. इसके अलावा कुछ और न खिलाने की जरूरत है और न ही पिलाने की.
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