Rae Bareli News: 'हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है'. ये लाइनें मशहूर शायर शकील आजमी ने लिखी हैं. आज हम आपको उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के रहने वाले किसान की कहानी बताने जा रहे है, जिन्होंने पढ़ाई लिखाई करने के बाद नौकरी करने के बजाय पशुपालन की तरफ अपना कैरियर बनाने का मन बनाया. रायबरेली जनपद के शिवगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत निबड़वल गांव के रहने वाले किसान प्रभाकर प्रजापति मछली पालन (Fish Farming) से सालाना 25 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं.
किसान तक से खास बातचीत में प्रभाकर प्रजापति ने बताया कि उनके पिता भिलाई स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ में नौकरी करते थे. रिटायरमेंट के बाद हम लोग आजमगढ़ अपने गांव आ गए. चूंकि मेरा शुरू से रुझान खेती-किसानी की तरफ था. इसलिए हमने खेती करने का विचार किया. वह बताते हैं कि यहां पर जमीन खरीदने के लिए उनके पिता ने आर्थिक मदद की. उसके बाद उन्होंने मछली पालन का काम शुरू किया.
बीएससी एग्रीकल्चर तक पढ़ाई करने वाले किसान प्रभाकर प्रजापति बताते हैं कि वर्ष 1994-95 में रायबरेली जनपद में अपने एक मित्र की सहायता से 5 हेक्टेयर जमीन खरीदा. उन्होंने बताया कि जिस जमीन को उन्होंने खेती किसानी के लिए खरीदा था, उसमे भी उन्हें धोखा मिला. क्योंकि वह तो तराई क्षेत्र में निकली. जहां पर खेती किसानी करना असंभव था. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मत्स्य पालन करने का मन बनाया. इसके बाद वह रायबरेली जनपद के मत्स्य विभाग से सम्पर्क कर उनसे मत्स्य पालन की जानकारी हासिल की. उन्होंने बताया कि रायबरेली जनपद के मत्स्य विभाग से उनको 3 लाख रुपये का अनुदान भी मिला था.
67 साल के किसान प्रभाकर प्रजापति ने आगे बताया कि 1995 में उन्होंने एक-एक हेक्टेयर के 5 तालाब बनाकर मछली पालन का काम शुरू किया. एक हेक्टेयर तालाब में 1 से 1.5 लाख रुपये के बीच लागत आती है, और मुनाफा 4-6 लाख रुपये के बीच हो जाता है. उन्होंने बताया कि वह रोहू, नैन, भाकुर (कतला), ग्रास कार्प, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प (बिगहेड) जैसी उन्नत किस्म की मछली की प्रजातियों का पालन करते हैं. मछली के बच्चे वह पहले कोलकाता से लेकर आते थे, लेकिन अब लखनऊ, उन्नाव, जैदपुर( बाराबंकी ) से लेकर आते हैं और मछलियों के चारे के लिए वह चावल की पॉलिश, मुर्गी की खाद, सरसों की खली का प्रयोग करते हैं.
किसान प्रभाकर ने बताया कि तालाब में तैयार मछलियों को वह लखनऊ से लेकर गोरखपुर के बाजारों में बिक्री के लिए भेजते हैं. जहां से उन्हें अच्छा दाम मिल जाता है. अब वह इस काम से 25 लाख रुपये के करीब सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. वह बीते 28 वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं.
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लाक तकनीक से मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य विभाग 40 से 60 फ़ीसदी की सब्सिडी दे रहा है. इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है. प्रोजेक्ट का निरीक्षण करने के बाद किसानों का चयन होता है.
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