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Glanders Disease: घोड़े, गधे और खच्चरों के आने-जाने पर लगाया बैन, जानिए किस राज्य ने लिया फैसला 

Glanders Disease: घोड़े, गधे और खच्चरों के आने-जाने पर लगाया बैन, जानिए किस राज्य ने लिया फैसला 

हरियाणा के हिसार में एक बार फिर ग्लैंडर्स बीमारी का मामला सामने आया है. अब इस बीमारी के लक्षण एक खच्चर में पाए गए हैं. इससे पहले भी हिसार में ही एक मामला और सामने आ चुका है. रोहतक में भी ग्लैंडर्स का मामला पकड़ा जा चुका है. इसी को देखते हुए ऐहतियात बरती जा रही है. वहीं नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (NRCE) के एक्सपर्ट पर भी पूरे मामले पर लगातार नजर रखे हुए हैं. 

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प्रतीकात्मक फोटो. प्रतीकात्मक फोटो.

गधे-घोड़ों और खच्चरों को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है. एक बार फिर तीनों ही पशुओं की आवाजाही यानि उन्हें ट्रांसपोर्ट किए जाने पर बैन लगा दिया गया है. अब ये बैन लगाया है हरियाणा सरकार ने. हाल ही में एक खच्चर में ग्लैंडर्स बीमारी की पुष्टी हुई है. इसी के बाद से ये बैन लगाया गया है. खच्चर हिसार के सुल्तानपुर गांव का है. इसी को देखते हुए हरियाणा के पशुपालन विभाग ने हिसार में तीनों पशुओं की आवाजाही पर बैन लगा दिया है. अब गधे-घोड़े और खच्चर ना तो हिसार से बाहर जाएंगे और ना ही हिसार के अंदर दाखि‍ल होंगे. 

विभाग के उप निदेशक डॉ. सुभाष चंद्र जांगड़ा ने सभी अश्वीय पशुओं जैसे गधे-घोड़े और खच्चर से संबंधित दौड़, मेले, प्रदर्शनी और खेलों के आयोजन पर बैन लगाने की घोषणा की है. उनका कहना है कि ग्लैंडर्स एक गंभीर और संभावित रूप से घातक संक्रामक रोग है. इसलिए ये बैन लगाया गया है. 

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कुछ ही महीने में आया तीसरा केस

जानकारों की मानें तो बीते दो से तीन महीने के अदंर ग्लैंडर्स बीमारी का ये तीसरा केस सामने आया है. हिसार में ये दूसरा मामला है, जबकि इससे पहले एक मामला रोहतक में सामने आया था. नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (NRCE) के एक्सपर्ट की मानें तो गधा-घोड़ा हो या फिर खच्चर, ग्लैंडर्स बीमारी होने पर उसकी नाक से खून आने लगता है, सांस लेने में कठिनाई होती है, शरीर का सूखापन और त्वचा पर फोड़े जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. और परेशान करने वाली बात ये है कि इस बीमारी की वजह से दूसरे घरेलू पशुओं में भी इसके फैलने का खतरा बना रहता है.

बीमार जानवर के 25 नहीं 75 हजार देने की सिफारिश 

जानकारों की मानें तो ग्लैंडर्स बीमारी का कोई इलाज नहीं है. अगर किसी भी पशु को ये बीमारी हो जाती है तो हर तरह की सरकारी अनुमति मिलने पर उस बीमारी पशु को इच्छा मृत्यु दे दी जाती है. लेकिन इसके चलते पशुपालक को इससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता था. इसी के चलते सरकार प्रति बीमारी पशु की इच्छा मृत्यु पर पशुपालक को 25 हजार रुपये दिए जाते हैं. लेकिन एआरसीई ने पशुपालकों को 25 की जगह 75 हजार रुपये देने की सिफारिश की है. अभी इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है.  

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