Horses Export: विदेशों में अब मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़ों की भी लगेगी ऊंची बोली, जानें क्यों 

Horses Export: विदेशों में अब मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़ों की भी लगेगी ऊंची बोली, जानें क्यों 

Horses game and Export भारत में मारवाड़ी, काठियावाड़ी, स्पीती, जंसकारी और मणि‍पुरी आदि सात नस्ल के घोड़े हैं. अभी तक इन घोड़ों की खूबसूरती और काबलियत सिर्फ भारत तक ही सीमित थी, लेकिन अब ये विदेश भी जा सकेंगे. दूसरे देशों में रहने वाले घोड़ों के शौकीन लोग इन्हें खरीद सकेंगे. 

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Horses Export: विदेशों में अब मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़ों की भी लगेगी ऊंची बोली, जानें क्यों घुड़सवारी खेल

Horses game and Export भारत में घोड़ों की सात ऐसी नस्ल हैं जो रजिस्टर्ड हैं. ये सभी सात नस्ल एक से बढ़कर एक हैं. कुछ को खेलों के लिए पाला जाता है तो कुछ पहाड़ी और ठंडे इलाकों में सामान के साथ यात्रा करने के लिए पाले जाते हैं. एक नस्ल ऐसी भी है जिसे उसकी ऊंची कद-काठी और फुर्ती के चलते शौक के लिए पाला जाता है. लेकिन अफसोस की बात ये है कि अभी कुछ महीने पहले तक देश के अलावा विदेशों में इन घोड़ों की कोई पूछ नहीं थी. इनकी बोली लगाना तो दूर कोई इन्हें अपने देश में एंट्री देने तक को तैयार नहीं था.

लेकिन अब इन घोड़ों की बोली भी लगेगी और इंटरनेशनल गेम्स में ये घोड़े हिस्सा भी लेंगे. एक और खास बात ये है कि इन घोड़ों को विदेशी जमीन पर कदम रखने से पहले अब क्वारंटाइन भी नहीं होना पड़ेगा. और ये सब मुमकिन हुआ है डीजीज फ्री जोन घोषि‍त होने के चलते. डीजीज फ्री जोन में पलने वाले घोड़े भी एक्सपपोर्ट हो सकेंगे. 

घोड़ों की नस्ल और उनकी खासियत 

  • मारवाड़ी घोड़ों को मुख्य रूप से सवारी और खेल के लिए पाला जाता है. देश में यह सबसे ऊंचे और लम्बे घोड़े की भारतीय नस्ल है. 
  • कठियावाड़ी नस्ल गुजरात के सौराष्ट्र की है. इसके अलावा यह राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिलों में भी मिलते हैं. इसका रंग ग्रे और गर्दन लंबी होती है. मारवाड़ी नस्ल जैसा ही कीमती होता है.
  • स्पीती घोड़े कम चारे पर, कम तापमान वाले पहाड़ी इलाकों और ऊंची, लंबी दूरी की यात्रा के लिए इन्हें बहुत अच्छा माना जाता है. ये घोड़े कद में छोटे होते हैं.
  • जंसकारी घोड़े पहाड़ों पर सवारी और सामान ढोने के काम आते हैं. लेह-लद्दाख में बहुत हैं. संख्या कम होने के चलते इनकी नस्ल बचाने पर काम चल रहा है. कारगिल की लड़ाई में इनका बड़ा योगदान रहा था.
  • मणिपुरी नस्ल के घोड़ों को पोलो खेल में इस्तेमाल होने के चलते इन्हें पोलोपोनी भी कहा जाता है. इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते है. यह एक ऐसी नस्ल है जो 14 अलग-अलग रंगों में पाई जाती है. 
  • भूटिया नस्ल के घोड़े सिक्किम और दार्जिलिंग इलाके में पाए जाते हैं. इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से घुड़दौड़ और सामान ढोने के लिए किया जाता है. इस नस्ल के घोड़े ज्यादातर नार्थ-ईस्ट में मिलते हैं.
  • कच्छी-सिंधी घोड़े की नस्ल रेगिस्तानी इलाके की है. इस नस्ल के घोड़े गुजरात के कच्छ और राजस्थान के जैसलमेर-बाड़मेर में खुद को बड़ी आसानी से ढाल लेते हैं. दूसरे घोड़ों के मुकाबले यह ज्यादा से ज्यादा गर्मी को भी सहन कर लेते हैं.

निष्कर्ष- 

इस जोन के बन जाने से अब घोड़ों से जुड़े कई क्षेत्रों में इसका फायदा मिलेगा. जैसे खेलों में खरीद-फरोख्त में, प्रजनन (ब्रीडिंग) में और बायो सिक्योरिटी के साथ-साथ डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट को मजबूत करने में इसका बड़ा फायदा मिलेगा. हालांकि अफ्रीकी हॉर्स सिकनेस के मामले में भारत साल 2014 में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है.

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