दूध और मीट की बढ़ती डिमांड के चलते बकरी पालन गांवों की सीमा को तोड़ चुका है. शहरों में भी बड़ी तेजी से गोट फार्मिंग बढ़ रही है. इंग्लैंड रिटर्न युवा बकरी पालन कर लाखों कमा रहे हैं. डॉक्टरों-हकीम द्वारा बकरी के दूध को दवाई बताए जाने के बाद से कई नए र्स्टाटअप सामने आए हैं. कुछ ब्रीडिंग सेंटर चलाकर महीनों की वेटिंग पर बकरी के बच्चे बेच रहे हैं. लेकिन एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी पालन दूध के लिए हो या फिर मीट के लिए, पहले यह जान लेना बहुत जरूरी है कि आपके इलाके में किस नस्ल की बकरी फले-फूलेगी. देशभर में 37 अलग-अलग नस्ल की बकरियां पाली जा रही हैं. पशु जनगणना 2019 के मुताबिक देश में 15 करोड़ बकरे और बकरियां हैं. हर साल इनकी संख्या में 1.5 से दो फीसद तक का इजाफा हो रहा है. दूध और मीट की डिमांड भी बढ़ रही है. देश के कुल दूध उत्पादन में बकरियों का योगदान करीब 3 फीसद है. देश में 3.63 लाख बकरियां दूध देने वाली हैं. साल 2020-21 में 62 लाख लीटर दूध दिया था.
वहीं इसी साल करीब 12 लाख मीट्रिक टन मीट का उत्पादन भी हुआ था. एक्सपर्ट की मानें तो बकरी पालन से पहले यह जान लेना भी बहुत जरूरी है कि कौन सी नस्ल दूध के लिए फायदेमंद रहेगी और कौन सी मीट के लिए. कुछ ऐसी भी नस्ल हैं जो दूध और मीट दोनों के लिए पाली जाती हैं.
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हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बकरियों की तीन खास नस्ल पाई जाती हैं. दूध और मीट के लिए तो नहीं, लेकिन पश्मीना के लिए इन बकरियों को खासतौर पर पाला जाता है. इंटरनेशनल मार्केट में भी पश्मीना की खासी डिमांड होती है. यह तीन नस्ल हैं गद्दी जिसकी संख्या (4.25 लाख) है. वहीं चांगथांगी (2 लाख) और चेगू (2350) नस्ल के बकरे पहाड़ी और ठंडे इलाकों में पाले जाते हैं. इन्हें खासतौर से मीट और पश्मीना रेशे के लिए पाला जाता है. ऐसे इलाकों में बकरे बोझा ढोने के काम भी आते हैं.
वैसे तो यूपी, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में बकरियों की दर्जनों नस्ल पाई जाती हैं. लेकिन जो खास नस्ल सबसे ज्यादा डिमांड में रहती हैं उसमे सिरोही की संख्या् (19.50 लाख), मारवाड़ी (50 लाख), जखराना (6.5 लाख), बीटल (12 लाख), बारबरी (47 लाख), तोतापरी, जमनापरी (25.50 लाख), मेहसाणा (4.25 लाख), सुरती, कच्छी, गोहिलवाणी (2.90 लाख) और झालावाणी (4 लाख) नस्ल के बकरे और बकरी हैं. यह सभी नस्ल, खासतौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के सूखे इलाकों में पाई जाती हैं. यह वो इलाके हैं जहां इस नस्ल की बकरियों के हिसाब से झाड़ियां और घास इन्हें चरने के लिए मिल जाती हैं.
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महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में खासतौर पर चार नस्ल की बकरियां सबसे ज्यादा पाई जाती हैं. यह नस्ल हैं संगलनेरी, मालाबारी (11 लाख हैं), उस्मानाबादी (36 लाख हैं) और कन्नीआड़ू (14.40 लाख हैं) हैं. एक्सपर्ट का मानना है कि यह सभी नस्ल खासतौर से मीट के लिए पाली जाती हैं.
पूर्व और उत्तर पूर्व में मुख्य तौर पर तीन नस्ल सबसे ज्यादा पाली जाती हैं. इसमे से ब्लैक बंगाल अपने नाम से बिकती है. इनकी संख्या करीब 3.75 करोड़ है. जैसा की नाम से ही मालूम हो जाता है कि यह पश्चिम बंगाल की खास नस्ल है. दूध के साथ ही इसे मीट के लिए बहुत पंसद किया जाता है. इसके अलावा असम की आसाम हिल्स भी बहुत पसंद की जाती है. गंजम भी इन इलाकों की एक खास नस्ल है. इनकी संख्या करीब 2.10 लाख है.
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