भारत दूध उत्पादन में नंबर वन है. अभी और बड़ी संभावना है कि दूध उत्पादन को और तेजी से बढ़ाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए ये भी जरूरी है कि घरेलू बाजार में और एक्सपोर्ट मार्केट में डेयरी प्रोडक्ट की डिमांड भी बढ़े. लेकिन ये मुमकिन होगा कम लागत के टेस्टी प्रोडक्ट तैयार करने से. साथ ही एक्सपोर्ट में डिमांड तब बढ़ेगी जब पशुओं की बीमारी पर हम कंट्रोल करेंगे. अभी खुरपका-मुंहपका, ब्रूसोलिसिस और एंथ्रेक्स जैसी पांच बीमारियों के चलते डेयरी प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट नहीं बढ़ पा रहा है. पशुपालन और डेयरी सेक्टर की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 1702 करोड़ रुपये दिए हैं.
सरकार की इस मदद से पशुपालन और डेयरी सेक्टर में नौ अलग-अलग विषयों पर काम किया जाएगा. सरकार की इस मदद से एनिमल हैल्थ, डेयरी प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी, पशु नस्ल सुधार, एनिमल न्यूट्रीशन, वेटरनरी एजूकेशन, भेड़-बकरी की संख्या बढ़ाने आदि पर जोर दिया जाएगा. इसका मकसद किसानों की इनकम को डबल करना है.
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एनिमल एक्सपर्ट डॉ. दिनेश भोंसले का कहना है कि हमारे देश में 300 मिलियन पशु हैं. लेकिन उसमे से सिर्फ 100 मिलियन पशु ही दूध देते हैं. बाकी के 200 मिलियन दूध नहीं देते हैं. इसके पीछे जो बड़ी वजह है वो उनकी खराब हैल्थ है. इतना ही नहीं जो 100 मिलियन पशु दूध दे रहे हैं वो भी प्रति पशु के हिसाब से कम है. इसलिए प्रति पशु दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि पशु नस्ल सुधार पर काम हो.
वहीं एनिमल हैल्थ पर काम करना इसलिए जरूरी है कि पशु अगर मामूली रूप से भी बीमार होता है तो सबसे पहले दूध के रूप में उसके उत्पादन पर असर पड़ता है. वहीं जो 200 मिलियन पशु दूध नहीं दे रहे हैं उसमें भी कहीं ना कहीं बड़ी वजह बीमारियां ही हैं. ऐसी बहुत सारी बीमारियां हैं जिनके चलते पशु गर्भधारण नहीं कर पाता है.
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एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि हरा चारा हो या सूखा चारा, सभी तरह के चारे की कमी होने लगी है. और वक्त के साथ ये कमी लगातार बढ़ रही है. यहां तक की मिनरल मिक्चर (दाना) की भी कमी होने लगी है. इसके चलते पशुपालन की लागत भी बढ़ने लगी है. चारा अच्छा नहीं मिलता है तो दूध की क्वालिटी भी खराब हो जाती है. इसके लिए साइलेज और हे जैसी और उन्नत तकनीक की जरूरत है. पशुओं के लिए पैलेट्रस तैयार कर दूध उत्पादन और उसकी क्वालिटी दोनों को ही बढ़ाया जा सकता है.
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