
गाय-भैंस सुबह-शाम में ही दूध देती है. जबकि पशुपालकों का एटीएम बने पशु का दूध कभी भी दोह सकते हैं. अगर बिक्री करनी हो तो एक घंटे में नकद बिक जाता है. पशु का मैन्योर एडवांस रुपयों में बिक रहा है. शायद इसीलिए इस छोटे पशु को पशुपालकों का एटीम कहा जाता है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब पंजाब में इस पशु का पालन करने वालों को गरीब समझा जाता था. इसलिए इस पशु को गरीब की गाय के नाम से भी जाना जाता है. ये गरीब की गाय और कोई नहीं महात्मा गांधी की भी चहेती रही बकरी है. आज देश में गाय-भैंस के बाद सबसे ज्यादा बकरी पालन हो रहा है. दूध-मीट की डिमांड को देखते हुए अब चार-पांच बकरियों के पालन से बढ़कर बड़े-बड़े गोट फार्म खुल रहे हैं.
आज यही गरीब की गाय पशुपालकों को चार तरीके से मुनाफा करा रही है. मीट-दूध से तो इनकम होती ही है, साथ ही बकरी के बच्चे और एडवांस रकम के साथ मैन्योर (मेंगनी) बेचकर भी इनकम हो रही है. खास बात ये है कि हर साल मीट और दूध की डिमांड बढ़ रही है. घरेलू बाजार ही नहीं एक्सपोर्ट का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. पशुपालन के लिए बैंक से लोन लेने वालों में भी सबसे ज्यादा आवेदन बकरी पालन के लिए आ रहे हैं.
इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी डॉ. आरएस सोढ़ी का कहना है कि डेयरी के बड़े प्लेयर की नजर बकरी के दूध पर है. बाजार में डिमांड भी है. लेकिन सबसे बड़ी परेशानी बकरी का दूध कलेक्शन करने में आती है. लेकिन जल्द ही ये परेशानी दूर हो जाएगी. बड़े बकरी फार्म की संख्या अभी कम है. लेकिन कई बड़ी कंपनियों ने बड़े बकरी फार्म की शुरुआत कर दी है. अकेले गुजरात में ही दो से तीन बड़े बकरी फार्म पर काम चल रहा है. दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में भी बड़े फार्म पर काम चल रहा है.
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केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली का कहना है कि खासतौर से बच्चों में बकरी का दूध बहुता फायदा पहुंचाता है. यही वजह है कि यूरोप में बच्चों के लिए बनने वालीं 95 फीसद दवाइयों में बकरी का दूध इस्तेमाल किया जाता है. बकरी के दूध में वीटा क्रेजिन होता है. जबकि गाय के दूध में अल्फा क्रेजिन पाया जाता है. इसलिए बकरी का दूध पीने से बच्चों को किसी भी तरह की एलर्जी नहीं होती है.
वैसे तो देश में बकरियों की करीब 40 नस्ल हैं. इसमे 7 नस्ल ऐसी हैं जो दूध के लिए पाली जाती हैं. जबकि ब्लैक बंगाल, बीटल और बरबरी मीट-दूध दोनों के लिए ही पाली जाती है. जमनापरी और जखराना नस्ल को मीट के लिए ही पाला जाता है. देश में बकरों की पांच ऐसी नस्ल हैं जो मीट के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद की जाती हैं. बकरीद साल का एक बड़ा बाजार है बकरों के लिए. इसके अलावा दुर्गा पूजा भी. मीट एक्सपोर्ट की बात करें तो इसे और बढ़ाने के लिए अब बकरी पालन में ऑर्गेनिक चारे पर ध्यान दिया जा रहा है.
क्योंकि होता ये है कि एक्सपोर्ट के दौरान मीट की केमिकल जांच होती है. हैदराबाद का एक संस्थान यह जांच करता है. कई बार ऐसा हुआ कि जांच के बाद मीट कंसाइनमेंट लौटकर आ जाता है. यह इसलिए होता है कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता है उसमे कहीं न कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हुआ होता है. लेकिन अब बकरी पालन के दौरान ऑर्गेनिक चारा उगाने की सलाह दी जाती है. सीआईआरजी तो इस पर रिसर्च भी कर चुका है.
एक बकरे में से जितना ज्यादा मीट निकलेगा तो मीट बेचने वाले को उतना ही ज्यादा फायदा होगा. इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए सीआईआरजी में एक रिसर्च चल रही है. ये बकरों का वजन बढ़ाने से संबंधित रिसर्च है. जीन एडिटिंग नाम की इस रिसर्च से किसी भी नस्ल के बकरे और बकरियों के जीन में एडिटिंग कर उनका वजन बढ़ाया जा सकेगा. सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट एसपी सिंह के मुताबिक अगर किसी भी नस्ल के बकरे का अधिकतम वजन 25 किलो है तो इस रिसर्च से उसका वजन 40 से 50 किलो तक किया जा सकेगा.
गोट एक्सपर्ट की मानें तो अगर ब्रीडिंग सेंटर चलाकर बकरा पालन किया जाए तो ज्यादा मुनाफा होता है. इसका तरीका ये है कि आप जगह और अपनी सुविधा अनुसार बकरियां और ब्रीडर बकरा रखकर उनसे बच्चे ले सकते हैं. जैसे अगर 100 बकरी हैं तो मानकर चलें कि छह महीने में आपको 150 बच्चे मिलेंगे. उसमे बकरियां भी होंगी. इसमे से अच्छे बच्चे छांटकर उन्हें ब्रीडिंग के लिए रख सकते हैं. कुछ 150 बच्चों में से 90 या 100 बकरे मिल जाएंगे. इन्हें आप पूरे एक साल या डेढ़ साल तक, जब भी बकरीद हो उन्हें खिला-पिलाकर तैयार कर सकते हैं. इस तरह अच्छी नस्ल के बकरे तैयार हो जाएंगे. प्योर ब्रीड होने के चलते देखने में भी खूबसूरत होते हैं. और बकरीद के दौरान वजन से ज्यादा खूबसूरती के दाम मिलते हैं.
मथुरा, यूपी में बकरी पालन कर रहे और सीआईआरजी के गेस्ट ट्रेनर और गोट एक्सपर्ट राशिद बताते हैं कि अगर आप 20 से 25 बकरे-बकरियों के साथ गोट फार्मिंग शुरू करने जा रहे हैं तो सबसे पहले आपको 20 स्क्वायर फीट लम्बे और 20 फीट चौड़े हॉल की जरूरत होगी. इस साइज के हॉल को तैयार कराने में आज के बाजार रेट के हिसाब से करीब 150 से 175 रुपये स्क्वायर फीट का खर्च आएगा. इसके साथ ही बिजली के उपकरण और उनकी फिटिंग का खर्च अलग से है. इस प्लान के तहत 20 बकरियों के साथ पांच बकरे पाले जाएंगे. 20 बकरी और पांच बकरों के पालन पर तीन से 3.50 लाख रुपये तक की लागत आएगी. अगर मुनाफे की बात करें तो एक साल में एक बकरी पर 5.5 हजार रुपये से लेकर छह हजार रुपये प्रति बकरी मुनाफा होगा.
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बकरी पालकों की मानें तो अगर किसी बकरी फार्म में 200 बकरी हैं तो यह तय मान लें कि 25 से 30 दिन में एक ट्राली मेंगनी जमा हो जाती है. अगर मेंगनी की इस ट्राली को बेचा जाए तो यह 1200 रुपये से लेकर 1400 रुपये तक की बिक जाती है. खरीदार एडवांस में पैसा दे जाते हैं. वहीं अगर हम इससे वर्मी कम्पोस्टा बनाकर बेचते हैं तो यह आठ से 10 रुपये किलो तक बिकती है. वर्मी कम्पोस्टर बनाने में थोड़ी मेहनत जरूरत लगती है, लेकिन इससे मुनाफा अच्छा हो जाता है.
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