Shrimp Export: टैरिफ का असर, सीफूड के लिए घरेलू बाजार में तलाशी जा रहीं संभावनाएं 

Shrimp Export: टैरिफ का असर, सीफूड के लिए घरेलू बाजार में तलाशी जा रहीं संभावनाएं 

Shrimp Production and Export सीफूड एक्सपोर्ट यानि झींगा के लिए नए बाजारों की तलाश शुरू हो गई है. इसमे विदेशी और घरेलू दोनों ही तरह के बाजार शामिल हैं. सीफूड एक्सपोर्टर ने इस पर चर्चाएं भी शुरू कर दी हैं. साथ ही बाजारों के लिए सुझाव भी दिए जा रहे हैं. 

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Shrimp Export: टैरिफ का असर, सीफूड के लिए घरेलू बाजार में तलाशी जा रहीं संभावनाएं भारत से करीब 40 फीसदी झींगा अमेरिका को निर्यात किया जाता है

Shrimp Production and Export सीफूड के लिए अमेरिका के अलावा और भी बाजार हैं. चीन, वियतनाम, डोमिनिकन गणराज्य और मोरक्को में बहुत संभावनाएं हैं. अमेरिकी टैरिफ को लेकर स्थिचति साफ न होने के चलते एक्सपोर्टर ने दूसरे देशों में बाजारों को तलाशना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही देश में घरेलू बाजार को भी बड़ी उम्मीद के साथ देखा जा रहा है. सीफूड एक्सपोर्टर के बीच इसे लेकर चर्चाएं चल रही हैं. साथ ही अमेरिका में सीफूड का बाजार कमजोर पड़ने की भी चर्चा हो रही है. लेकिन मौजूदा विवाद को भांपते हुए अमेरिकी बाजारों ने प्रोडक्ट स्टॉक कर लिया है. यही वजह है कि अभी बहुत ज्यादा असर नहीं दिखाई दे रहा है. 

एक्वाकनेक्ट के संस्थापक और सीईओ राजमनोहर सोमसुंदरम ने एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए कहा, "हमें अपने व्यापार क्षेत्रों को नए सिरे से तैयार करना होगा. यूरोपीय संघ, ईस्ट एशिया और मध्य-पूर्व को जरूरतमंद वाले बाजारों में बदलना होगा. तरह-तरह के अलग बाजारों से अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता कम होगी और एक संतुलित निर्यात बाजार तैयार होगा."

घरेलू बाजार में झींगा के लिए क्या रणनीति बन रही है 

एक्वाकल्चर कंपनी किंग्स इन्फ्रा वेंचर्स के चैयरमेन और एमडी शाजी बेबी जॉन ने एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए कहा है कि झींगा अब किफायती हो गया है. अब जरूरत इस बात की है कि घरेलू बाजारों में इसकी उपलब्धता बनाई जाए. जिससे कि घरेलू बाजार में इसकी डिमांड बढ़े. असल में परेशानी ये है कि अभी तक झींगा एक्सपोर्ट पर निर्भर रहा है. घरेलू बाजार को हमेशा से छोटा माना गया. अब जरूरत इस सोच से बाहर आने की है. शहरी क्षेत्र के घरेलू बाजार में झींगा उपलब्ध कराने के लिए अब हमारे पास सक्रिय और हाइटेक रिटेलर स्विगी, जेप्टो और ब्लिंकिट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म हैं जो फास्ट डिलेवरी करते हैं. साथ ही रेडी टू ईट और रेडी टू कुक झींगा को भी बढ़ावा दिया जाए. अगर ऐसा किया तो प्रोटीन की चाहत रखने और वक्त की आपाधापी में फंसे लोग इसे खूब पसंद करेंगे. इतना ही नहीं  रेलवे, एयरलाइंस, सशस्त्र बलों और कॉर्पोरेट कैंटीन जैसे सरकार समर्थित चैनलों से झींगे को मेनू में शामिल करने की भी मांग हो रही है. अगर ऐसा होता है तो इससे पोषण बढ़ाने और मौजूदा संकट को अवसर में बदलने का मौका मिलेगा. 

अमेरिकी बाजार ने स्टोर किया भारतीय झींगा 

जॉन का कहना है कि बेशक इस वक्त प्रोडक्ट की कमी के चलते अमेरिकी बाजार सुस्त हैं. लेकिन इसकी एक वजह ये भी है कि मौजूदा हालात को भांपते हुए वहां की कंपनियों ने पहले से ही झींगा और दूसरे सीफूड का स्टॉक कर लिया है. यही वजह है कि इसी साल अप्रैल-जून में शिपमेंट बढ़कर 88 हजार टन हो गया, जो एक साल पहले 79 हजार टन था. 

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