Cow-Sheep Dairy: 6 महीने घर से तो 6 महीने सड़क पर चलती है दूध की ये डेयरी, जानें वजह 

Cow-Sheep Dairy: 6 महीने घर से तो 6 महीने सड़क पर चलती है दूध की ये डेयरी, जानें वजह 

Cow-Sheep Dairy गाय और भेड़ के रेवड़ लेकर ये पशुपालक साल के छह महीने सड़क पर गुजारते हैं. सड़क पर ही ये अपनी डेयरी चलाते हैं. बड़ी डेयरी चलाने वालों को भी पता होता है कि ये लोग अपने पशुओं के साथ कहां मिलेंगे, वहीं जाकर इनसे दूध खरीद लिया जाता है. कोई बहुत ज्यादा जरूरत होने पर ही ये लोग कुछ दिन के लिए अपने घर और गांव जाते हैं.   

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Cow-Sheep Dairy: 6 महीने घर से तो 6 महीने सड़क पर चलती है दूध की ये डेयरी, जानें वजह गायों को लेकर पशुपालक साल के 6 महीने तक घर-गांव से दूर सड़क पर रहते हैं.

Cow-Sheep Dairy घर और सड़क से चलने वाली दूध की ये डेयरी जरा अलग हटकर है. गायों के दूध की ये डेयरी साल के छह महीने घर से तो छह महीने सड़क से चलती है. ऐसा नहीं है कि सड़क पर छह महीने डेयरी को चलाना किसी सिस्टम का हिस्सा है. ये हरे चारे की मजबूरी है जो सैकड़ों गायों के मालिकों को भी सड़क से डेयरी चलाने पर मजबूर करती है. सिर पर लाल पगड़ी और हाथ में डंडा लिए गायों के आगे-पीछे ये लोग आपको राजस्थान से सटे राज्यों की सड़क पर मिल जाएंगे. ये लोग मूल रूप से राजस्थान के ही होते हैं. दूसरे राज्यों के जिस शहर में भी हरा चारा होने की सूचना मिलती है वहीं ये अपनी गाय और भेड़ लेकर पहुंच जाते हैं. 

घर छोड़ गायों संग सड़क पर कब आते हैं पशुपालक? 

  • पाली, राजस्थान के रहने वाले पशुपालक बाघाराम ने किसान तक को बताया कैसे चलाते हैं डेयरी. 
  • फरवरी-मार्च में अपने पशुओं संग घर-गांव से निकल आते हैं. 
  • क्योंकि गांवों में हरे चारे और पानी की कमी शुरू हो जाती है. 
  • गायों का चारा और पानी लगातार मिलते रहे इसलिए हरियाणा में दाखिल हो जाते हैं. 
  • पशुओं से परिवार का पेट भरना है तो इसलिए घर छोड़ना जरूरी हो जाता है. 
  • सभी पशुपालक एक ही राज्य और एक ही शहर में नहीं जाते हैं. 
  • महेन्द्रगढ़ बार्डर के रास्ते हरियाणा में दाखिल होकर रेवाड़ी, मानेसर, गुड़गांव से करनाल चले जाते हैं. 
  • इस रास्ते पर चलते हुए सितम्बर आ जाता है और ये वक्त पशुपालक गांवों लौटने का होता है. 

गाय-भेड़ के रेवड़ को कैसे चलाते हैं ये पशुपालक? 

  • दो लोग मिलकर गायों के एक रेवड़ को संभालते हैं.
  • 150 से 200 गायों के एक झुंड को रेवड़ कहा जाता है. 
  • किसी भी एक शहर में 10 से 12 रेवड़ होते हैं. 
  • पशुओं को चारे की कमी न हो इसलिए सभी रेवड़ अलग-अलग शहरों में जाते हैं. 
  • सड़क पर चलते वक्त गायों को सभालना मुश्किल काम होता है. 
  • सड़क पर चलने वाले वाहनों को कोई परेशानी न हो इसका ख्याल रखना पड़ता है. 
  • कई बार हमे गालियों का भी सामना करना पड़ता है. 
  • एक गांव में हम दो से तीन दिन तक रुकते हैं, रुकना चारे की उपलब्धता पर भी निर्भर करता है. 

रेवड़ में होती हैं रफ एंड टफ कांकरेज गाय?

  • राजस्थान के ये पशुपालक कांकरेज गाय पालते हैं. 
  • ये नस्ल मूल रूप से गुजरात की है, लेकिन राजस्थाेन में भी इसका पालन होता है. 
  • इस गाय की बड़ी पहचान ये हैं कि सींग बड़े और मोटे होते हैं. 
  • इस नस्ल की गाय का शरीर आम देसी गाय के मुकाबले बहुत बड़ा, भारी-भरकम होता है. 
  • ये दिनभर में अधिकतम पांच लीटर तक दूध देती है. 
  • ये रफ एंड टफ नस्ल की गाय है जो हर मौसम को आसानी से झेल जाती है. 

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