Shrimp Market: झींगा बाजार के लिए उठी आवाज को पांच साल तक किया अनसुना, अब उसी के साथ मिला रहे सुर 

Shrimp Market: झींगा बाजार के लिए उठी आवाज को पांच साल तक किया अनसुना, अब उसी के साथ मिला रहे सुर 

Domestic Shrimp Market झींगा उत्पादन किसान और प्रोडयूसर से लेकर एक्सपोर्टर तक अमेरिकी टैरिफ के खेल में उलझे हुए हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें और क्या नहीं. भारत में नौ लाख टन झींगा उत्पादन होता है. लेकिन अमेरिकी टैरिफ की घोषणा के बाद से एक्सपोर्ट जैसे मानों थम गया है. 

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Shrimp Market: झींगा बाजार के लिए उठी आवाज को पांच साल तक किया अनसुना, अब उसी के साथ मिला रहे सुर झींगा पालन

Domestic Shrimp Market भारत झींगा उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. वहीं कुल झींगा उत्पादन का 65 से 70 फीसद एक्सपोर्ट किया जाता है. अमेरिका झींगा का एक बड़ा खरीदार था. लेकिन अमेरिकी टैरिफ के बाद से झींगा सेक्टर में खलबली मची हुई है. क्योंकि देश में झींगा की खपत बहुत कम है. तीन साल पहले से गुजरात का एक झींगा किसान और एक्सपर्ट झींगा एक्सपोर्ट पर निर्भरता कम करने की बात कर रहा था. झींगा के लिए घरेलू बाजार तैयार करने का प्लान बता रहा था. लेकिन पूरे पांच साल तक झींगा सेक्टर उस आवाज को अनसुना करता रहा. 

अब जब अमेरिकी सीफूड बाजार में उदासी छाई हुई है तो इस सेक्टर से जुड़े प्रोडयूसर और एक्सपोर्टर को घरेलू बाजार याद आ रहा है. यहां तक की सरकारी दखल वाली कैंटीन के मेन्यू में झींगा को शामिल कराने की मांग कर रहे हैं. देश के बड़े सीफूड एक्सपोर्टर इस हालात में सरकार से दखल देने की मांग कर रहे हैं.  

मनोज ने उठाई थी घरेलू बाजार की आवाज 

झींगा किसान डॉ. मनोज शर्मा सूरज, गुजरात में झींगा उत्पादन करते हैं. बीते तीन साल से मनोज झींगा और फिशरीज से जुड़े कार्यक्रम और मीडिया में लगातार घरेलू बाजार की आवाज को उठा रहे हैं. उनका कहना है कि अगर हमारे पास घरेलू बाजार होगा तो एक्सपोर्ट मार्केट में कोई हम पर दबाव नहीं बना पाएगा. हमे बाजार में रेट भी सही मिलेंगे. इसके लिए काम भी कोई बहुत बड़ा नहीं करना है. सिर्फ देश के कुछ बड़े शहरों में झींगा के लिए बाजार बनाना है. 

160 लाख टन मछली खा सकते हैं झींगा क्यों नहीं 

मनोज शर्मा कहते हैं का कहना है कि हमारे देश में करीब 10 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी खूब बिकती है. लेकिन ढाई से तीन लाख टन झींगा को हमारे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ग्राहक नहीं मिलते हैं. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. ढाई सौ से तीन सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है. छह सौ से आठ सौ रुपये किलो बकरे का मीट बिक रहा है. जिसमे ज्यादा से ज्यादा करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. लेकिन जरूरत इस बात की है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंग्लोर आदि शहरों में झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.

झींगा किसान डॉ. मनोज शर्मा ब्लैक टाइगर झींगा के साथ.
झींगा किसान डॉ. मनोज शर्मा ब्लैक टाइगर झींगा के साथ.

750 शहरों में खि‍लाना है 20 हजार टन झींगा 

डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि झींगा का घरेलू बाजार खड़ा करने के लिए कोई बहुत बड़े तामझाम की जरूरत नहीं है. हमे सिर्फ करना ये है कि हमारे देश के 750 बड़े शहरों में 30 दिन यानि एक महीने में 20 हजार टन झींगा की खपत बढ़ानी है. ये कोई बहुत मुश्किल काम भी नहीं है. हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग नॉनवेज खाते हैं. मछली खाने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है. मुम्बई में हर महीने 100 टन के करीब झींगा खाया जा रहा है. गुजरात के सूरत जैसे शहर में भी झींगा की बिक्री हो रही है. अगर पीएम मत्स्य योजना के तहत ही 25 से 50 करोड़ रुपये खर्च कर किसी फिल्मी हीरो और क्रिक्रेटर से झींगा खाने का विज्ञापन करा दिया जाए तो बड़ी ही आसानी से लोग झींगा की ओर आने लगेंगे.

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