एक बार फिर देश की दो बकरियों की प्रमुख नस्ल ने अपना लोहा मनवाया है. अन्य देशों के साथ-साथ उनकी चर्चा नीदरलैंड्स में भी हो रही है. हाल ही में भारत के दौरे पर आए नीदरलैंड्स के एक्सपर्ट इन खास नस्ल की दो बकरियों को देखकर और उनके बारे में जानकर खासे प्रभावित हुए. बकरियों के फार्म हाउस देखने के दौरान उनकी नजर पंजाब की बीटल और यूपी की बरबरी नस्ल पर पड़ी. इस दौरान उन्होंने दोनों ही नस्ल को डेयरी गोट्स बताया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने बकरियों के खानपान, रहन-सहन और सही तरीके से उनका रिकॉर्ड मेंटेन करने की बात भी कही.
बीटल नस्ल की बकरी प्रति दिन तीन से चार लीटर तक दूध देती है. जबकि देसी गाय के दूध का एवरेज 2.5 लीटर प्रति दिन है. गाय को रोजाना सात से आठ किलो सूखा चारा चाहिए, जबकि बकरी के लिए दिनभर में ज्यादा से ज्यादा दो किलो बहुत हो जाता है. बीटल बकरी साल में दो बार बच्चे देती है. एक बार में बकरी दो से तीन बच्चे तक देती है. जबकि गाय बकरी के इस मुकाबले में कहीं नहीं ठहरती है. देश में बीटल नस्ल के बकरे और बकरियों की संख्या 12 लाख है. यह नस्ल खासतौर पर पंजाब में पाई जाती है. लेकिन दूध के चलते हर राज्य में थोड़ी बहुत पाली जा रही हैं.
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कृषि विज्ञान केंद्र, बरनाला के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. प्रहलाद सिंह ने 'किसान तक' को बताया कि नीदरलैंड्स से आए (Programma Uitzending Managers) के एक्सपर्ट एड मार्क्स ने बीटल और बरबरी बकरी को देखने और उसके बारे में जानने के बाद उसमे दूध की संभावनाएं ज्यादा जताईं. उनका कहना था कि अगर बीटल और बकरी के खानपान पर अच्छे से ध्यान दिया जाए. उन्हें सिर्फ मैदान में चराने पर ही नहीं रखा जाए. दाना और पत्तेदार खाने को दिया जाए. रहन-सहन पूरी तरह साइंटीफिक तरीके से हो. बीमार बकरियों को अलग और हेल्दी को अलग रखा जाए. कम दूध देने वाली अलग और ज्यादा दूध देने वालीं अलग रखी जाएं, तो दूध उत्पादन की संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ जाती हैं. बकरियों के शेड का वातावरण अच्छा रहे.
इस दौरान मार्क्स को पंजाब में बकरियों के कई फार्म दिखाए गए. भारतीय बकरी पालन के बारे में जानकारी दी गई. जिस पर मार्क्से ने बकरियों का रिकॉर्ड रखने और उनकी टैगिंग करने की सलाह भी दी.
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डॉ. प्रहलाद सिंह ने बताया कि मार्क्स ने बकरियों के दूध पर चर्चा शुरू होते ही उन्होंने उसके दूध से बने चीज के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी. चीज की डिमांड और चीज के बाजार के बारे में जानकारी दी. वहीं बकरियों के दूध की मेडिशनल वैल्यू के बारे में भी बताया. वहीं बकरी पालन और दूध कारोबार से जुड़ा एक खास सुझाव उन्होंने यह भी दिया कि इस फील्ड में महिला कोऑपरेटिव को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
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