Buffalo Farming: भैंस की मुर्रा और नीली रावी नस्ल पालन से मिलेगा शानदार मुनाफा, जानें इनकी खासियत

Buffalo Farming: भैंस की मुर्रा और नीली रावी नस्ल पालन से मिलेगा शानदार मुनाफा, जानें इनकी खासियत

गाय पालन के साथ पशुपालक भैंस पालन कर अपने दूध के व्यवसाय में बेहतर कमाई कर सकते हैं. वहीं भारत जैसे देश में बड़े पैमाने पर मुर्रा एवं नीली रावी नस्ल भैंस का पालन किया जाता है. मोटे तौर पर दूध के दाम की बात करें तो जहां गाय 20 लीटर दूध देगी और जो दाम मिलेगा. वही भैंस के 12 से 13 लीटर दूध में उतना दाम मिल जाएगा.

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Buffalo Farming: भैंस की मुर्रा और नीली रावी नस्ल पालन से मिलेगा शानदार मुनाफा, जानें इनकी खासियतमुर्रा नस्ल की भैंस

अगर हम आप से कहें कि 20 लीटर गाय की दूध से जो कमाई होती है. उसकी तुलना में भैंस की 12-14 लीटर दूध से कमाई हो जाएगी. आप एक बार जरूर सोचेंगे, यह कैसे संभव है. लेकिन यह सच है. आज किसान तक आपको एक ऐसे ही पशुपालन व्यवसाय से जुड़ी खबर बताने जा रहा है. मौजूदा वक्त में भैंस पालन डेयरी व्यवसाय में मुनाफा कमाने का सरल माध्यम है. वहीं पशु पालन से जुड़े जानकरों एवं डॉक्टर के अनुसार किसान गाय पालन के साथ भैंस पालन करते हैं. तो वह बढ़िया कमाई कर सकते हैं. पटना पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सक डॉ दुष्यंत कुमार कहते हैं कि पशुपालन के क्षेत्र में भैंस पालन काला सोना है और इनमें से किसान अगर मुर्रा एवं नीली रावी नस्ल के भैंस का पालन करते हैं, तो बेहतरीन कमाई कर सकते हैं. मोटे तौर पर दूध के दाम की बात करें तो जहां गाय 20 लीटर दूध देगी और जो दाम मिलेगा. वही भैंस के 12 से 14 लीटर दूध में उतना दाम मिल जाएगा.

मुर्रा नस्ल की भैंस का पालन देगा मुनाफा

पशु चिकित्सक डॉ दुष्यंत कुमार बताते हैं कि मुर्रा भैंस पालतू भैंस की एक नस्ल है, जो दूध उत्पादन के लिए पाली जाती है. मुर्रा भैंस मूलतः अविभाजित पंजाब की पशु है. लेकिन हाल के समय में ये दूसरे प्रांतों के साथ विदेशों में भी पाली जा रही है. जिनमें से इटली, बल्गेरिया, मिस्र में बड़े पैमाने पर पाली जाती है. वहीं हरियाणा में इसे 'काला सोना' कहा जाता हैै. आगे पशु चिकित्सक बताते हैं कि दूध में वसा उत्पादन के लिए मुर्रा सबसे अच्छी नस्ल है. इसके दूध में 7% वसा पाया जाता है.

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वहीं मुर्रा भैंस की सींग जलेबी के आकार में काला रंग का होता है. साथ ही माथा उठा हुआ होता है. इसकी उत्पत्ति का स्थान हिसार से दिल्ली तक माना जाता है. गर्भा अवधि 310 दिन की होती है. बिहार के जलवायु के अनुसार प्रति दिन दोनों वक्त का मिलाकर 15 से 16 लीटर तक दूध दे सकती है.

नीली रावी भैंस की नस्ल
नीली रावी भैंस की नस्ल

नीली रावी की धमक देश से लेकर विदेश तक

डॉ दुष्यंत बताते हैं कि नीली रावी नस्ल भैंस का पालन मुर्रा भैंस के बाद सबसे अधिक की जाती है. नीली रावी पंजाब की घरेलू नस्ल की भैंस है. यह मुख्य रूप से पाकिस्तान और भारत में अधिक पाई जाती है. इसके अलावा बांग्लादेश, चीन, फिलीपींस, श्रीलंका, ब्राज़ील,वेनेजुएला देश के किसान भी इसका पालन करते हैं. इसका उपयोग मुख्य रूप से डेयरी उद्योग के लिए किया जाता है. वहीं एक साल में ये करीब लगभग 2000 किग्रा दूध दे सकती हैं. इसका रिकॉर्ड दूध उत्पादन 378 दिनों में  6535 किलोग्राम है. आगे डॉ यादव बताते हैं कि इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है. आमतौर पर इन भैंसों के माथे पर उजले रंग की आकृति बनी होती है. इसके अलावा पूंछ, पैरों पर सहित थान पर उजले रंग के निशान होते हैं. वहीं आंखे नीली और बरौनी सफेद होता है. इसके शरीर के पांच भाग में सफेद रंग होता है.

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भैंस पालन गाय पालन से कैसे बेहतर

पशु चिकित्सक डॉ दुष्यंत कुमार यादव बताते हैं कि भैंसों के प्रति ऐसी धारणा बन गई है कि इसका दूध पीने से मोटी बुद्धि होती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. आज के समय में भैंस का दूध अधिक दाम दिला सकता है. आगे वह कहते हैं कि गाय पालन से भैंस पालन काफी आसान एवं कम खर्च में किया जा सकता है. गाय पालन के दौरान साफ-सफाई, पंखा, दवा सहित अन्य व्यवस्था करनी पड़ती है. इसके अलावा गाय पालन के दौरान एक आदमी का 24 घंटा सेवा में तत्पर रहना पड़ता है, जबकि भैंस पालन में इतना ध्यान नहीं देना पड़ता है.  मोटे तौर पर दूध के दाम की बात करें तो जहां गाय 20 लीटर दूध देगी और जो दाम मिलेगा. वही भैंस के 12 से 14 लीटर दूध में उतना दाम मिल जाएगा. किसान अनिल कहते हैं कि अगर किसानों को दूध के क्षेत्र में अधिक कमाई करनी है. तो वह गाय के साथ एक दो भैंस का पालन जरूर करें. इससे दूध में कभी कमी नहीं आएगी. साथ ही दाम हर रोज एक समान मिलता रहेगा.

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