एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव ने मंगलवार को 36 वर्षों की शानदार सेवा के बाद भारतीय रेलवे से विदाई ली. सुरेखा यादव का यह 'trailblazing journey' (पथप्रदर्शक सफर) आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा. सेंट्रल रेलवे ने उन्हें भावभीनी विदाई देते हुए कहा, “सुरेखा यादव की अग्रणी यात्रा आने वाले समय में महिलाओं और पुरुषों दोनों को प्रेरित करती रहेगी.”
2 सितंबर 1965 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक किसान परिवार में जन्मी सुरेखा ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और 1989 में रेलवे जॉइन किया. 1990 में वह सहायक लोको पायलट बनीं और एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनने का गौरव प्राप्त किया.
सुरेखा यादव ने न केवल मुंबई की लोकल ट्रेनों को चलाया, बल्कि उन्होंने देश की सबसे प्रतिष्ठित ट्रेनों- वंदे भारत एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस- को भी सफलतापूर्वक चलाया. मार्च 2023 में उन्होंने सोलापुर से मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) तक पहली वंदे भारत एक्सप्रेस चलाई. उनकी आखिरी ड्यूटी राजधानी एक्सप्रेस की थी, जिसे उन्होंने इगतपुरी से CSMT तक चलाया.
सुरेखा यादव ने बताया कि ट्रेन चलाने का काम बेहद जिम्मेदारी भरा था. "हमारे पास न तय समय था, न तय डेस्टिनेशन. हर दिन नया इंजन, नई ट्रेन, नए सहकर्मी और अलग-अलग चुनौतियां होती थीं. लेकिन मैंने अपने काम को पूरी ईमानदारी और सम्मान के साथ किया," उन्होंने कहा.
रेलवे में चयन के समय अधिकारियों ने उनसे पूछा था कि क्या वह इस कठिन काम को कर पाएंगी, क्योंकि कोई महिला इससे पहले कभी लोको पायलट नहीं बनी थी. इस पर उन्होंने जवाब दिया, “अगर अब तक किसी ने नहीं किया है, तो कोई तो शुरुआत करेगा. अगर मुझे मौका मिला, तो मैं कभी पीछे नहीं हटूंगी.”
14 अप्रैल 2000 को सुरेखा यादव ने पहली ‘लेडीज स्पेशल’ लोकल ट्रेन को CSMT से डोंबिवली तक चलाया. उस समय मुंबई लोकल की ‘लाइफलाइन’ को महिला द्वारा चलाना बड़ी बात मानी गई थी.
सुरेखा ने ट्रैक पार करते समय होने वाली दुर्घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे न केवल परिवारों को नुकसान होता है, बल्कि लोको पायलट्स पर भी मानसिक असर पड़ता है. उन्होंने लोगों से अपील की कि ट्रेनों के ट्रैक को सुरक्षित तरीके से पार करें.
सुरेखा यादव ने अपने परिवार, सीनियर्स और सहकर्मियों का आभार जताया. उन्होंने बताया कि अनियमित ड्यूटी, लंबे समय तक घर से दूर रहने के बावजूद, उनके परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया.
हालांकि सुरेखा का अंतिम कार्यदिवस मंगलवार था, लेकिन तकनीकी कारणों से आधिकारिक विदाई समारोह 1 अक्टूबर को CSMT स्टेशन पर होगा. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मेरा सफर खेतों से शुरू होकर CSMT के प्लेटफॉर्म नंबर 18 पर खत्म हुआ.”
सुरेखा यादव न सिर्फ एशिया की पहली महिला ट्रेन पायलट बनीं, बल्कि उन्होंने अपने हौसले, मेहनत और समर्पण से लाखों महिलाओं के लिए एक नई राह खोली. उनका सफर आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगा कि अगर जज्बा हो तो कोई भी सपना हकीकत बन सकता है.
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