Success Story: इस किसान ने छोटी पहाड़ी पर उगा दी धान की 30 वैरायटी, फल-सब्जियों की भी लगाई 80 किस्में

Success Story: इस किसान ने छोटी पहाड़ी पर उगा दी धान की 30 वैरायटी, फल-सब्जियों की भी लगाई 80 किस्में

65 साल के जॉन ने दृढ़ता, कड़ी मेहनत और अपने बच्चों की मदद से, इदुक्की के आदिमली पंचायत के एक आदिवासी गांव कोरंगट्टी में जो कुछ किया है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है. उन्‍होंने अपने बायो-डायवर्सिटी पुलियानमकल ग्रुप फार्म पर धान की 30 तरह की वैरायटीज उगाई हैं. साथ ही उन्‍हें संरक्षित किया और कई तरह के पेड़, पौधे और जड़ी-बूटियां भी सफलतापूर्वक उगाई हैं.

65 साल के पीजी जॉन ने छोटे से खेत में उगाईं धान की 30 किस्‍में  65 साल के पीजी जॉन ने छोटे से खेत में उगाईं धान की 30 किस्‍में
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • May 21, 2024,
  • Updated May 21, 2024, 1:08 PM IST

आज हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बता रहे हैं जिन्‍होंने पहाड़ की चोटी पर जमीन के एक छोटे से हिस्‍से को हरे-भरे जंगल में बदल दिया. इन्‍होंने न सिर्फ वहां पर कई तरह की सब्जियां और फल उगाए, बल्कि धान की 30 वैरायटीज को उगाकर हर किसी को हैरान कर दिया. साथ ही उन्‍होंने बता दिया कि अगर मन में कुछ ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है. हम आपको आज केरल के इदुक्‍की में रहने वाले 65 साल के किसान पीजी जॉन और उनकी सफलता से रूबरू करवाने जा रहे हैं. 

25 साल की मेहनत 

65 साल के जॉन ने दृढ़ता, कड़ी मेहनत और अपने बच्चों की मदद से, इदुक्की के आदिमली पंचायत के एक आदिवासी गांव कोरंगट्टी में जो कुछ किया है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है. उन्‍होंने अपने बायो-डायवर्सिटी पुलियानमकल ग्रुप फार्म पर धान की 30 तरह की वैरायटीज उगाई हैं. साथ ही उन्‍हें संरक्षित किया और कई तरह के पेड़, पौधे और जड़ी-बूटियां भी सफलतापूर्वक उगाई हैं. न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस से बात करते हुए पीजी जॉन ने कहा, 'यह एक ग्रुप फार्म है क्योंकि यहां सभी पेड़ और पौधे मैंने और मेरे बच्चों ने लगाया और पालन-पोषण किया है.' उन्‍होंने बताया कि 25 साल पहले उन्‍होंने यह सब शुरू किया था और उस समय वह अपने परिवार समेत कोरंगट्टी में बस गए थे. 

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अद्भुत है जॉन का कलेक्‍शन 

उनके कलेक्‍शन में 60 तरह के हर्बल औषधीय पौधे, 40 सब्जी के पौधे, 20 नकदी फसलें, 40 फलों के पेड़, जिनमें सात प्रकार के आम, छह प्रकार के कटहल, आठ प्रकार के केले के अलावा 20 अन्य पेड़ और 30 प्रकार के धान शामिल हैं. जॉन के मुताबिक  उनके समूह के खेत में हर पौधे की एक कहानी है. साथ ही वह उनसे जुड़ी किंवदंतियों में भी बहुत विश्वास करते हैं.  उन्‍होंने कहा, 'ऐसा कहते हैं कि रूटा ग्रेवोलेंस (अरुथा) की पत्तियों को धूप में नंगे हाथों से नहीं तोड़ना चाहिए. इस वजह से इस पौधे का नाम 'अरुथा' पड़ा, जिसका मलयालम में अर्थ है 'नहीं'.' 

रिसर्च भी कहती है कि रूटा प्रजाति फाइटोफोटोडर्माटाइटिस से जुड़ी है. इसलिए इसके पौधों को नंगे हाथों से नहीं छूना चाहिए, खासकर धूप वाले दिनों में. उन्‍होंने आगे बताया, 'इसी तरह, प्लंबैगो ऑरिकुलेटा (नीलाकोडुवेली) की शाखाओं को काटकर इसके मालिक को किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं देना चाहिए. इससे धन में कमी आती है.' 

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जॉन का बगीचा नहीं स्‍कूल 

जॉन का बगीचा केरल के बायोडाइवर्सिटी बोर्ड के लिए एक फार्म स्कूल भी है. यहां किसानों के लिए फसल की खेती, तकनीक और पैटर्न पर कक्षाएं आयोजित की जाती हैं. जॉन ने कहा कि संथानपारा में कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारी अक्सर खेत का दौरा करते हैं और फसल उगाने, खासकर धान उगाने में सहायता करते हैं. हालांकि जॉन अपने 40 सेंट के प्लॉट पर 30 प्रकार के धान उगाते और संग्रहीत करते हैं लेकिन वह कोरांगट्टी में अपने घर के पास 5 एकड़ भूमि पर बड़े पैमाने पर उनकी खेती करते हैं. 

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पूर्वज करते थे धान की खेती 

उन्‍होंने बताया कि उनके पूर्वज धान की खेती करते थे. इसलिए खेती उनके खून में है. उन्‍होंने धान के बीजों को संरक्षित किया है, जिसे कोरंगट्टी के आदिवासी बुजुर्ग 25 साल पहले अपने खेतों में उगाते थे.  जॉन ने कहा, जो कोरंगट्टी जनजातियों द्वारा सालों पहले उगाई जाने वाली स्थानीय धान की किस्म 'मालाबारी' के आखिरी संरक्षक हैं.  जॉन साल 2017 तक मुख्य रूप से धान की खेती पर ध्यान केंद्रित करते थे. उसी समय एक एक्‍सीडेंट में वह घायल हो गए और अपना बायां पैर खो दिया. तब से, उन्होंने अपने घर के आसपास पौधे और पेड़ लगाना शुरू कर दिया. उन्‍हें  हरियाली के बीच रहना, पक्षियों की चहचहाहट सुनना और फूलों को खिलते देखना  सुकून देता है. साथ ही जॉन अपने घर में लगी प्रजातियों के बारे में दूसरों को ज्ञान देना भी खूब पसंद करते हैं.

 

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