पंजाब में जहां ज्यादातर किसान पराली जलाने की परंपरा में यकीन करते हैं तो वहीं एक किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने पराली से अपनी खेती की जमीन की पूरी सूरत बदलकर रख दी है. अमृतसर के तहत आने वाले सहरी गांव के प्रगतिशील किसान पलविंदर सिंह ने पिछले आठ सालों से पराली न जलाकर एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है. इसके बजाय वे फसल के अवशेषों को मिट्टी में मिला देते हैं. इससे भूमि की उर्वरता बढ़ी है और फसल उत्पादन में भी खासतौर से इजाफा हुआ है. टिकाऊ खेती के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें ‘पर्यावरण के संरक्षक’ की उपाधि दिलाई है.
अपने भाई के साथ 15 एकड़ कृषि भूमि के मालिक पलविंदर सिंह बताते हैं कि उन्होंने करीब 10 साल पहले उन्होंने कृषि विभाग से सलाह लेकर आधुनिक खेती की तकनीकों को अपनाना शुरू किया. कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन में उन्होंने पराली न जलाने का संकल्प लिया. इसके बाद गेहूं के भूसे और धान की ठूंठ को मिट्टी में मिलाने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग शुरू किया. उन्होंने बताया कि इस पहल के परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे हैं. उनकी जमीन की उत्पादकता में सुधार हुआ है और अब फसलों की पैदावार भी अधिक हो रही है. पलविंदर सिंह संतोषपूर्वक कहते हैं, 'पराली न जलाकर मैंने न केवल पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया है, बल्कि अपनी मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाई है.'
टिकाऊ खेती के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से पलविंदर सिंह ने अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ मिलकर ‘यंग इनोवेटिव क्लब’ नाम का एक समूह बनाया है. इस क्लब के माध्यम से वे आसपास के गांवों में बैठकें और जागरूकता अभियान आयोजित करते हैं, ताकि किसानों को पराली जलाने से रोका जा सके. उनकी सफलता से प्रेरित होकर अब क्षेत्र के कई किसान भी पर्यावरण-अनुकूल खेती के तरीके अपनाने लगे हैं.
पलविंदर सिंह अपने साथी किसानों से अपील करते हैं, 'अगर हम सब खेतों में पराली और फसल अवशेष जलाना बंद कर दें तो हवा और साफ होगी और मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी. इसका सीधा फायदा हमें बेहतर फसल उत्पादन और स्वस्थ पर्यावरण के रूप में मिलेगा.' पर्यावरण संरक्षण के लिए उनके लगातार प्रयासों को सराहते हुए स्थानीय प्रशासन ने पलविंदर सिंह को ‘गार्जियन ऑफ एनवायरनमेंट अवॉर्ड’ से सम्मानित किया है.
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