आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के पोननूर गांव की रहने वाली के. मीराबी की जिंदगी शुरू से ही कठिनाइयों से भरी रही. छठी कक्षा में ही आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उसके बाद सिर्फ 11 साल की उम्र में शादी हो गई और महज 14 साल की उम्र तक वह दो बच्चों की मां बन भी बन गईं. लेकिन जिंदगी में कुछ करना कुछ हासिल करना है ये हौसला कभी खतम होने नहीं दिया. यही कारण है की आज हम उनकी चर्चा किसान तक पर कर रहे हैं. क्या है के. मीराबी की कहानी आइए
2008 में, मीराबी के पति वेंकट राव को जहरीले कीटनाशकों के धुएं से ब्रेन स्ट्रोक हुआ, जिससे उन्हें लकवा मार गया. इस दुखद घटना ने मीराबी की सोच और जीवन को बदल दिया. उन्हें एहसास हुआ कि रासायनिक खेती न केवल उनकी फसलों को, बल्कि उनके परिवार को भी नुकसान पहुँचा रही है. तभी उन्होंने प्राकृतिक खेती का रास्ता चुना.
2009 में, मीराबी रायथु साधिकारा संस्था (RySS) में मुख्य संसाधन व्यक्ति के रूप में शामिल हुईं. उनके प्रयासों से महिला किसानों में जागरूकता बढ़ी और उन्हें प्राकृतिक खेती के प्रति आकर्षित करने में मदद मिली. 2019 से, मीराबी संस्था की मास्टर ट्रेनर और उप-विभागीय एंकर बन गई हैं.
मीराबी ने प्री-सीजनल ड्राई बुआई (PMDS) और ड्रिब्लिंग तकनीक जैसे नवाचारों को अपनाया, जिससे वह एक ही वर्ष में 30 अलग-अलग फसलें उगा सकीं. इससे न केवल उनकी आय बढ़ी, बल्कि मिट्टी की सेहत में भी सुधार हुआ.
2012 में, उन्होंने सिर्फ एक एकड़ जमीन पर रसायन-मुक्त खेती शुरू की. लागत मात्र 19,000 रुपये थी, लेकिन मुनाफ़ा 1.5 लाख रुपये तक पहुंच गया. बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के उपज की गुणवत्ता देखकर हर कोई दंग रह गया.
मीराबी ने अब तक 230 महिला किसानों को प्रशिक्षित किया है, जो अब प्राकृतिक खेती करके अच्छे मुनाफे कमा रही हैं. इन महिलाओं की उपज अब खास बाजारों में बिक रही है, जिससे उन्हें सम्मान और आत्मनिर्भरता दोनों मिल रही है.
मीराबी को 2024 में यूनाइटेड किंगडम के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित Oxford Real Farming Conference में हिस्सा लेने का मौका मिला. वहां उन्होंने भारत और आंध्र प्रदेश की ओर से प्राकृतिक खेती पर अपना अनुभव साझा किया. यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जो किसी ग्रामीण महिला किसान के लिए कल्पना से परे थी.
मीराबी बताती हैं, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर बोलूंगी.” वे कहती हैं कि उनका उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि समाज को रासायन-मुक्त, स्वास्थ्यवर्धक भोजन देना भी है. RySS के उपाध्यक्ष विजय कुमार और पर्यावरण अर्थशास्त्री पवन सुखदेव ने भी मीराबी के प्रयासों की सराहना की और उनका मार्गदर्शन किया.
आज मीराबी का ‘Meerabi Model’ पूरे राज्य में अपनाया जा रहा है. वह सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुकी हैं- जो देशभर की महिलाओं को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित कर रहा है. उनकी कहानी यह दिखाती है कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी बाधा आगे नहीं टिक सकती. पर्यावरण के लिए हितकारी और आर्थिक रूप से फायदेमंद खेती का रास्ता अब और भी किसानों के लिए खुल रहा है.
के. मीराबी की सफलता इस बात का प्रमाण है कि प्राकृतिक खेती सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि आज के दौर की जरूरत है. उनकी कहानी हर उस किसान के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो बदलाव लाना चाहता है- अपने जीवन में, अपने परिवार में, और समाज में.
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