भारत में हरी सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. खासकर बात करें परवल की तो ये आज के दौर की सबसे प्रचलित सब्जी बनती जा रही है. जिसकी खेती हर सीजन में कर सकते हैं. गांव और कस्बों में तो क्या शहरों में इसकी बिक्री हाथों हाथ हो जाती है. वाराणसी स्थित भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने काशी सूक्ष्म शक्ति (कद्दूवर्गीय फसल)’, जो एक विशेष सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण है. इस उत्पाद का पहले संस्थान में और फिर किसानों के खेतों में परीक्षण किया गया, और इसके नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे. सोनभद्र जनपद के महूंवारिया गांव के प्रगतिशील किसान शिवपूजन मौर्य ने इस तकनीक को अपनाया और इसकी सफलता की मिसाल पेश की.आइए जानते हैं आखिर क्या है वह तकनीक, जिसे आप भी अपनाकर कम लागत में परवल की बंपर पैदवार हासिल कर सकते हैं.
किसान शिवपूजन ने बताया कि साल 2024 और 2025 में उन्होंने 6 बिस्वा भूमि में परवल की खेती में ‘काशी सूक्ष्म शक्ति’ का छिड़काव किया. मौर्य बताते हैं, पहले उपज 60-70 किलो ही होती थी, लेकिन 'काशी सूक्ष्म शक्ति' के प्रयोग से पिछले साल डेढ़ कुंतल परवल की तुड़ाई हुई. इस बार भी बिना छिड़काव वाले पौधों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक फलन दिखा है. इतना ही नहीं, पहले जहां तुड़ाई नवंबर में समाप्त हो जाती थी, वहीं बीते वर्ष यह दिसंबर तक जारी रही, जिससे उन्हें अधिक समय तक आमदनी हो रही है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक से काफी संतुष्ट हैं और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान से अपील हैं कि भविष्य में भी ऐसे उपयोगी उत्पाद किसानों तक पहुंचते रहें.
इस सफल प्रयोग को लेकर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि ‘काशी सूक्ष्म शक्ति’ को जल्द ही लाइसेंसिंग के माध्यम से कृषि उद्यमियों को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि यह नवाचार देशभर के किसानों तक पहुंच सके. उनका मानना है कि अगर खेती में वैज्ञानिक तकनीकों का सही उपयोग हो, तो आम किसान भी अपनी आमदनी दोगुनी कर सकता है. परवल की फसल से सालभर में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन ले सकते हैं.
सोनभद्र जनपद के महूंवारिया गांव के प्रगतिशील किसान शिवपूजन मौर्य ने बताया कि परवल के पौधे या जड़ों की रोपाई के बाद तुरंत एक सिंचाई का काम किया जाता है, ताकि पौधों का ठीक तरह से विकास हो सके. इसके अलावा हर 8 से 10 दिनों के बीच हल्की सिंचाई करनी होती है. परवल की खेती के लिये सर्दियों में 15 से 20 दिन और गर्मियों में 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई का कम कर लेना चाहिए.
मौर्य ने बताते हैं कि परवल की खेती से बेहतर उत्पादन के लिये प्रति हेक्टेयर खेत में 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट, 90 से 100 किग्रा. नत्रजन, 60 से 70 किग्रा. फास्फोरस, 40 से 50 किग्रा. पोटाश उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए.
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