
Green Fodder मौसम कोई भी हो, अगर पशु दुधारू है तो वो भरपूर और ज्यादा फैट वाला दूध तभी देगा जब उसे बैलेंस डाइट मिलेगी. बैलेंस डाइट यानि हरा-सूखा चारा समेत मिनरल्स भी खाने में दिया जाए. लेकिन अक्सर होता ये है कि खासतौर पर सर्दी और बरसात में हरा चारा पशुओं के लिए परेशानी खड़ी कर देता है. क्योंकि दोनों ही मौसम में हरे चारे में नमी की मात्रा बहुत होती है. और ये नमी पशुओं का पेट खराब करने के साथ ही उन्हें बीमार भी बनाती है. लेकिन ज्यादा उत्पादन के लिए पशुओं को बैलेंस डाइट भी खिलानी है. क्योंकि डाइट में कर्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स शामिल नहीं किए तो भरपूर उत्पादन नहीं मिलेगा. ऐसे में इस परेशानी से पशुपालकों को बचाने के लिए एनिमल एक्सपर्ट दलहनी चारा खिलाने की सलाह देते हैं.
लेकिन कई बार देखा गया है कि पशुपालक मौसम के हिसाब से होने वाले दलहनी हरे चारे को ही ज्यादा खिलाते हैं. पशु को लगातार एक ही तरह का हरा चारा देना बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं रहता है. जबकि होना ये चाहिए पशु का दिनभर का चारा ऐसा हो जो उसकी जरूरत के सभी तत्वों को पूरा करता हो. इसीलिए एक्सपर्ट दलहनी चारा खिलाने की सलाह देते हैं.
चारा एक्सपर्ट का कहना है कि हरे चारे की एक फसल कम से कम ऐसी होनी चाहिए जो एक बार लगाने के बाद कई साल तक उपज दे. जैसे नेपियर घास को बहुवर्षिय चारा कहा जाता है. बहुवर्षिय चारा वो होता है जो एक बार लगाने के बाद लम्बे वक्त तक उपज देता है. नेपियर घास भी उसी में से एक है. एक बार नेपियर घास लगाने के बाद करीब पांच साल तक हरा चारा लिया जा सकता है. लेकिन ऐसा भी नहीं किया जा सकता है कि पशुओं को सिर्फ नेपियर घास ही खिलाते रहें. अगर आप पशु को नेपियर घास दे रहे हैं तो उसके साथ उसे दलहनी चारा भी खिलाएं. इसके लिए सितम्बर में नेपियर घास के साथ लोबिया लगाया जा सकता है. हर मौसम में आप नेपियर के साथ सीजन के हिसाब से दूसरा हरा चारा लगा सकते हैं. ऐसा करने से पशु को नेपियर घास से कर्बोहाइड्रेड है तो लोबिया से प्रोटीन और दूसरे मिनरल्स मिलते हैं. और इसी तरह की खुराक से भेड़-बकरी में मीट की ग्रोथ होती है तो गाय-भैंस में दूध का उत्पादन बढ़ता है.
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