मशहूर कलमकार दुष्यंत कुमार ने लिखा था - 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों' ये शेर तब पढ़ा या लिखा जाता है जब कोई ऐसा काम हो जाता है जिसके बारे में सोचना या करना थोड़ा मुश्किल था. ये कहानी छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले की है जहां सोनहत जनपद में एक प्यारा सा गांव है किशोरी है. किशोरी गांव में एक तालाब है जो पिछले 2 दशक से बिना काम का हो गया था. अब ग्रामीणों ने इसे मिशन अमृत सरोवर के तहत पुनर्जीवित किया गया. आइए जानते हैं इससे ग्रामीणों को क्या लाभ हुआ.
पहले के समय में जलाशयों का बड़ा महत्व था. तब गिने चुने हैंडपंप या ट्यूबेल देखने को मिलते थे. अधिकतर काम नदी और तालाबों से होते थे, पीने के लिए कुएं से पानी आता था लेकिन समय के साथ उन जलाशयों का महत्व कम हो गया. हालांकि छत्तीसगढ़ के किशोरी गांव के किसानों और ग्रामीणों ने मिलकर अपने गांव में 20 साल पुराने तालाब का जीर्णोंधार कर इसे फिर जीवित किया. dprcg के अनुसार ये काम अमृत सरोवर मिशन के तहत किया गया. इस काम में करीब 10 लाख रुपये की लागत आई है. अब तालाब की जलभराव क्षमता को तीन गुना बढ़ाकर 10 हजार घनमीटर कर दिया गया है.
किसी चीज के पीछे मेहनत की जाए तो वो जाया नहीं होती, कुछ ना कुछ रिटर्न जरूर मिलता है. सोनहत जनपद के किशोरी गांव के ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई. दो दशक से फालतू पड़ा तालाब फिर जिंदा होने के बाद सिंचाई और मछली पालन में उपयोग किया जा रहा है. तालाब के पुनरुद्धार से आसपास के किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है.
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किसान मनोज रक्सेल और अरविन्द सिंह की तीन-तीन एकड़, जबकि सुरेन्द्र, लक्ष्मण, वीरेन्द्र और आनंद की दो-दो एकड़ से ज्यादा भूमि अब सिंचित हो रही है. इसके अलावा जगबली यादव की लगभग सवा एकड़ मीन भी इस तालाब से सींची जा रही है किसानों ने बताया कि अब वे खरीफ के साथ रबी की फसलें भी लेने लगे हैं, जिससे उनकी आमदनी में सुधार हुआ है. अब करीब 18 एकड़ तक खेतों की सिंचाई हो पा रही है.
तालाब का जीर्णोंधार होने के बाद इसका इस्तेमाल ना सिर्फ सिंचाई के लिए हो रहा है बल्कि अब यहां मछली पालन भी बढ़ गया है. ग्राम पंचायत ने अमृत सरोवर को आजीविका संवर्धन के रूप में स्थानीय महिला स्व-सहायता समूह को लीज पर उपलब्ध कराया है. जय मां महिला स्व-सहायता समूह की सदस्य महिलाओं ने इस तालाब से बीते ग्रीष्म में 75 हजार रुपये का लाभ लाभ मछली बेचकर लाभ कमाया है. समूह की अध्यक्ष सोनकुंवर और सचिव श्रीमती जीराबाई ने बताया कि इस साल लगभग तीन लाख रुपए के मछली उत्पादन की उम्मीद है. यह पहल महिलाओं के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बन रही है.