बिहार के भागलपुर जिले के गोपालपुर ब्लॉक के धरहरा गांव के लतीपाकर मोहल्ले के रहने वाले चंदन सिंह अपनी मेहनत और सूझबूझ से अपने दादा की कही बात को साकार कर रहे हैं. उनके दादाजी ने कहा था, "अगर तुम अपनी पुश्तैनी जमीन का सही तरीके से इस्तेमाल करोगे और उसे कृषि के क्षेत्र में बेहतर ढंग से प्रयोग करोगे तो तुम एक इंजीनियर से कहीं ज्यादा कमाई कर सकते हो." चंदन सिंह आज बागवानी और परंपरागत खेती के जरिए सालाना 25 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे हैं.
इसके साथ ही, वे किसान समूहों की मदद से युवा किसानों को खेती से बेहतर आय अर्जित करने के गुर सिखा रहे हैं. उनका मानना है कि अगर खेती को उद्योग की तरह अपनाया जाए, तो किसानों को आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता.
चंदन सिंह ने खेती शुरू करने से पहले ठेकेदारी, एनजीओ और सिक्योरिटी गार्ड एजेंसी जैसे कई क्षेत्रों में काम किया. लेकिन, उन्हें नहीं पता था कि उनके दादाजी द्वारा दशकों पहले लगाए गए आठ एकड़ में फैले आम और लीची के बागान उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूती देंगे. वे बताते हैं कि वे और उनके छोटे भाई मिलकर परंपरागत फसलों के साथ-साथ लीची और आम की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं. इसके अलावा, वे मौसमी फसलों के साथ मछली पालन की दिशा में भी कदम बढ़ा चुके हैं.
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चंदन सिंह बताते हैं कि वे इन दिनों हर रोज दो टन लीची बेंगलुरु भेज रहे हैं. पिछले साल उन्होंने विदेश में भी लीची निर्यात की थी. वह इस साल बेंगलुरु से दो टन आम विदेश भेजने की तैयारी में जुटे हैं. वह कहते हैं कि वर्तमान में बेंगलुरु में लीची 230 से 300 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है.
जहां वह केवल बागवानी या खेती से ही खुद ही कमाई नहीं कर रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी खेती से जोड़ रहे हैं. चंदन बताते हैं कि उनके गांव 22 से 25 साल के युवा दिन में खेत और बागों में काम करते हैं और शाम को ब्रांडेड कपड़े और जूते पहनकर आत्मविश्वास के साथ घूमते हैं. उनका सपना है कि खेती को उद्योग के रूप में स्थापित किया जाए और इस दिशा में वे लगातार काम कर रहे हैं.
चंदन सिंह अपनी मेहनत से अच्छा उत्पादन तो कर लेते हैं, लेकिन उनका कहना है कि अन्य राज्यों में लीची या आम बेचने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. भागलपुर जिले में न तो एयरपोर्ट की सुविधा है और न ही बेंगलुरु या मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए नियमित ट्रेनें उपलब्ध हैं. अगर फ्लाइट से आम या लीची भेजनी हो तो 250 किलोमीटर दूर सिलीगुड़ी जाना पड़ता है.
नजदीकी देवघर एयरपोर्ट में एयर कार्गो की सुविधा नहीं है. वहीं, भागलपुर से बेंगलुरु के लिए सप्ताह में केवल एक दिन ट्रेन उपलब्ध है, जिसमें जगह मिलना हमेशा संभव नहीं होता. इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर मंडी की व्यवस्था न होने के कारण बिचौलिये किसानों की फसल को मनमाने दामों पर खरीदते हैं. चंदन सिंह का कहना है कि इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को ध्यान देना चाहिए.