कृषि ड्रोन किसानों और खेती के लिए काफी कारगर और लागत कम करने वाले उपकरण के रूप में सामने आया है. लेकिन, इसका इस्तेमाल और इसकी पहुंच आम किसानों के खेतों तक होनी जरूरी है. झारखंड में ड्रोन दीदियां किसानों और कृषि ड्रोन के बीच के इसी गैप को भरने का काम कर रही हैं. वो किसानों को ड्रोन के इस्तेमाल के फायदे बता रही हैं, ड्रोन का इस्तेमाल करने के लिए जागरूक कर रही हैं. इतना ही नहीं इसके जरिए वो अपने लिए कमाई का एक माध्यम भी तैयार कर रही हैं और समाज में अपनी अलग पहचान कायम कर रही हैं.
झारखंड की उपराजधानी दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड की रहने वाली ड्रोन दीदी ममेजा खातून एक ऐसी ही ड्रोन दीदी हैं जो किसानों तक इस नई तकनीक को पहुंचाने का काम कर रही हैं. ममेजा खातून के गांव सोनाधाब में लगभग 500-600 की संख्या में किसान रहते हैं. उनके गांव में आम तौर धान, मक्का और गेहूं की खेती की जाती है. सभी किसान पारंपरिक तरीकों से ही खेती करते हैं. कृषि ड्रोन और नैनौ यूरिया के इस्तेमाल और फायदों के लेकर वो बहुत जागरुक नहीं हैं.
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कृषि परिवार से जुड़ी ममेजा बताती हैं कि उनके पिताजी किसान हैं. पति के घर में भी खेती होती है, इसलिए उन्हें बचपन से ही खेती बारे में पूरी जानकारी थी. उनका यह अनुभव ड्रोन दीदी बनने के उनके सफर में काम आया. ड्रोन दीदी के तौर परत चयन होने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने बीए तक पढ़ाई की है. इससे पहले वह आईसीडीएस योजना के तहत काम करती थीं. इसके साथ ही वो सीएससी की वीएलई भी हैं. उन्हें सीएससी के जरिए ही पता चला की ड्रोन दीदी योजना के तहत ड्रोन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
इसके बाद उन्होंने अपने सीनियर के सहयोग से इसकी पूरी जानकारी हासिल की और इंटरव्यू में शामिल हुईं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुए इस इंटरव्यू में उनके कृषि से संबंधित सवाल पूछे गए और उनका चयन ड्रोन दीदी के लिए हुआ. ममेजा ने बताया कि साल 2020 में वह शांति महिला मंडल महिला समूह में बतौर सचिव जुड़ी थीं. ड्रोन दीदी के चयन होने के लिए महिला समूह का भी काफी योगदान रहा. उन्होंने बताया कि कृषि ड्रोन के बारे में पहले वो जानती थीं पर कभी देखा नहीं था.
ममेजा आगे बताती हैं कि ड्रोन संचलान के लिए उनकी ट्रेनिंग रांची में हुई और मोतिहारी में लाइसेंस दिया गया. इसके बाद ड्रोन दीदी बन गईं. उन्होंने कहा कि उनके पास ड्रोन से छिड़काव करने के लिए फोन तो आते हैं, पर बैटरी ले जाने की समस्या के कारण अधिकांश जगहों पर ड्रोन को नहीं ले जा पाती हैं. उन्होंने कहा कि कई ऐसे किसान हैं जो यह कहते हैं कि नैनौ यूरिया के छिड़काव से उनकी फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी उन्हें जानकारी नहीं है. हालांकि, धीरे-धीरे किसान कृषि ड्रोन को लेकर जागरूक हो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि वो कई किसानों की फसलों में दवा और कीटनाशकों का छिड़काव मुफ्त में भी करती हैं. ताकि सभी किसान ड्रोन से नैनौ यूरिया के छिड़काव के फायदे के बारे में जान सकें. ममेजा ने कहा कि एक छिड़काव करने के 300 रुपये लेती हैं. साथ ही कहा कि ड्रोन दीदी बनकर खुशी तो मिलती है, लेकिन बैटरी को लेकर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बैटरी बैकअप कम होता है साथ ही ड्रोन को खेतों में ले जाने में बहुत परेशानी होती है. इसके लिए अगर उन्हें कोई साधन मिल जाता तो काम करने में उन्हें आसानी होती.
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ड्रोन पायलट बनने की खुशी जाहिर करते हुए ममेजा ने कहा कि एक ऐसी महिला जो घर में रहकर सिर्फ घर के ही काम करने को अपनी किस्मत समझती थी, आज वही महिला घर से बाहर निकल कर ड्रोन उड़ा रही है. यह उनके लिए और उनके परिवार के लिए बहुत गर्व की बात है. आज घर और समाज में उनकी अपनी अलग पहचान है. ममेजा को गर्व है कि वो एक ड्रोन पायलट हैं.