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MA पास करने के बाद ड्रोन दीदी बनीं दुमका की काजल, नैनो यूरिया के छिड़काव पर दी ये सलाह

MA पास करने के बाद ड्रोन दीदी बनीं दुमका की काजल, नैनो यूरिया के छिड़काव पर दी ये सलाह

ड्रोन दीदी काजल कुमारी ने अभी तक ड्रोन से बहुत अधिक खेतों में छिड़काव नहीं किया है. हालांकि वह उम्मीद कर रही हैं कि जब अच्छे से काम शुरू हो जाएगा तो उनकी कमाई बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि वह प्रति माह 15-20 हजार रुपये तक की कमाई कर सकेगी.

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हम हैं ड्रोन दीदी हम हैं ड्रोन दीदी

कृषि ड्रोन झारखंड के किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. इसे यहां के किसानों तक पहुंचाने के लिए सभी जिलों में ड्रोन दीदी काम कर रही हैं. ड्रोन दीदी गांवों में जाकर किसानों को इसके इस्तेमाल के फायदे को बता रही हैं और उन्हें इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. इसके जरिए ड्रोन दीदियों को भी लाभ हो रहा है क्योंकि ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ने से उनकी कमाई बढ़ेगी. दुमका जिले के जरमुंडी प्रखंड अंतर्गत चमरा बहियार पंचायत के बारा गांव की काजल कुमारी भी एक ऐसी ही ड्रोन दीदी हैं. 

काजल कुमारी ने अभी तक ड्रोन से बहुत अधिक खेतों में छिड़काव नहीं किया है. हालांकि वह उम्मीद कर रही हैं कि जब अच्छे से काम शुरू हो जाएगा तो उनकी कमाई बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि वो प्रति माह 15-20 हजार रुपये तक की कमाई कर सकेंगी. ड्रोन दीदी के तौर पर चयन होने से पहले काजल आंगनबाड़ी पोषण सखी के तौर पर काम कर करती थीं. इसके बाद जब झारखंड में सरकार बदली तब उन्हें पोषण सखी के पद से हटा दिया गया. फिर वो बेरोजगार हो गईं. 

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ड्रोन दीदी के लिए चयन

काजल कुमारी ने बताया कि इसके बाद वो साल 2023 में श्री हरी आजीविका सखी मंडल से जुड़ गईं. वहां वो बतौर अध्यक्ष जुड़ीं. यहां काम करने के दौरान ही उनका चयन ड्रोन दीदी के तौर पर किया गया. उन्होंने बताया कि उनके पति वीएलई सोसाइटी में काम करते हैं. पति के जरिए ही उनको ड्रोन दीदी योजना की जानकारी मिली. इसके बाद महिला समूह से उनका चयन किया गया. फिर लिखित परीक्षा ली गई है और इंटरव्यू लिया गया. यहां से पास होने के बाद उनका चयन ड्रोन दीदी के तौर पर किया गया. इसके बाद वो मोतिहारी गईं जहां पर वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए पीएम मोदी से उन्होंने बात भी की थी. 

बचपन से था खेती से लगाव

काजल कुमार ने एमए तक की पढ़ाई की है. उनके पिताजी किसान हैं और बड़े क्षेत्र में खेती करते हैं. इसलिए बचपन से ही काजल का झुकाव खेती की तरफ था. खेती-बाड़ी के बारे में उन्हें काफी जानकारी थी. इसके अलावा ससुराल में भी लोग खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि ड्रोन दीदी बनने से पहले ही उन्हें कृषि ड्रोन के बारे में काफी जानकारी थी. फिर जब ड्रोन हाथ में आया तब उसे उड़ाकर उन्हें बहुत खुशी मिली. उन्हें अब इस बात की खुशी है कि अब उनके पास एक रोजगार मिल गया है.

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ड्रोन से छिड़काव में आसानी

बचपन के दिनों को याद करते हुए काजल बताती हैं कि खेत में खाद और दवाओं का छिड़काव करना कितना मुश्किल भरा होता है. उन्होंने इस चीज को देखा है क्योंकि इसमें मेहनत और समय दोनों लगता है. धान के खेत के अंदर घुटनों तक पानी भरे खेत में खाद का छिड़काव करना बेहद परेशानी भरा होता है. पर अब ड्रोन के आ जाने से किसानों को इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. इसके साथ ही कम समय में खाद का छिड़काव सही तरीके से पूरे खेत में भी हो जाएगा. छिड़काव करने की लागत भी कम आएगी.

ड्रोन का रखना पड़ता है खयाल

काजल कुमारी ने कहा कि ड्रोन के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसका खयाल बच्चे की तरह रखना पड़ता है. रखरखाव में लापरवाही बरतने पर यह खराब हो सकता है. उन्होंने कहा कि बैटरी बैकअप एक बड़ी समस्या है. इसके साथ ही ड्रोन को उठाकर खेत तक ले जाने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. काजल कुमारी ने कहा कि अगर उन्हें सुविधाएं दी जाएं तो वे झारखंड के किसानों और कृषि की तस्वीर बदल सकती हैं क्योंकि आधुनिक कृषि के लिए यह बहुत जरूरी है. 

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किसानों को जागरूक करने की जरूरत 

उन्होंने कहा कि उनके पास किसानों के ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं. पर वो छिड़काव नहीं कर पा रही हैं. किसानों के सवाले के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि किसान ड्रोन से छिड़काव करने के लिए काफी उत्साहित हैं, पर नैनो यूरिया और डीएपी के इस्तेमाल को लेकर उनके मन में संशय की स्थिति है. नैनौ यूरिया और डीएपी के छिड़काव को लेकर किसानों को जागरूक करने की जरूरत है. काजल कुमारी कहती हैं कि ड्रोन दीदी बनकर उन्हें घर परिवार और समाज में एक अलग पहचान मिली है, जिसे वो और अपनी मेहनत से आगे बढ़ाएंगी.