मजदूरी करते-करते गांव की महिला बन गई सफल कपड़ा व्यापारी, प्रेरक है जयपाली मरकाम की कहानी

मजदूरी करते-करते गांव की महिला बन गई सफल कपड़ा व्यापारी, प्रेरक है जयपाली मरकाम की कहानी

जयपाली के सास-ससुर भी साथ ही रहते हैं. उनके इस संयुक्त परिवार का गुजर-बसर अब इसी कपड़ा दुकान से हो रहा है. यही नहीं, जयपाली ने अपने बढ़ते कारोबार के चलते क्षेत्र के सभी हाट बाजारों में अपनी चलित कपड़ा दुकान लगाने के लिए एक ऑटो भी खरीद लिया है.

गांव की महिला बन गई कपड़ा व्यापारीगांव की महिला बन गई कपड़ा व्यापारी
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Sep 19, 2024,
  • Updated Sep 19, 2024, 6:39 PM IST

जीवन की दुश्वारियां कभी-कभी निराश कर देती हैं. निराश मन को कहीं से जरा-सा भी सहारा मिल जाए तो जीने की राह आसान हो जाती है. ऐसा ही हुआ मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की मोयापानी गांव की जयपाली मरकाम के साथ. पति के साथ मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर करने वाली जयपाली के जीवन में कभी ऐसा वक्त भी आया, कि उनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे. खाली पेट सोने की नौबत भी आई. जिंदगी के बड़े ही बुरे दिनों से गुजरीं थीं वो. पर अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.  

दिहाड़ी मजदूरी करती थीं जयपाली

कभी पति के साथ दिहाड़ी मजदूरी करने वाली जयपाली अब एक कपड़ा व्यापारी बन चुकी हैं. कपड़े के व्यापार से उनके घर की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया है. जयपाली अपने कपड़ा व्यापार से हर महीने 15 रुपये से अधिक कमा रहीं है. उनके बच्चे अब परासिया के सरकारी प्री-मैट्रिक हॉस्टल में रहकर पढ़ रहे हैं. पति की बहनों में से बड़ी को जयपाली ने प्राइवेट जॉब में लगवा दिया है और छोटी को ब्यूटी पार्लर का कोर्स करवा रही हैं.

पति को दिलवाया ऑटो

जयपाली के सास-ससुर भी साथ ही रहते हैं. उनके इस संयुक्त परिवार का गुजर-बसर अब इसी कपड़ा दुकान से हो रहा है. यही नहीं, जयपाली ने अपने बढ़ते कारोबार के चलते क्षेत्र के सभी हाट बाजारों में अपनी चलित कपड़ा दुकान लगाने के लिए एक ऑटो भी खरीद लिया है. ऑटो चलाने के लिए एक ड्राइवर भी रख लिया है. जयपाली और उसके पति हाट बाजारों में दुकान लगाने जाते हैं.

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दुकान पर रखा कर्मचारी

ऐसे वक्त में भी जयपाली की तामिया ब्लॉक मुख्यालय में स्थायी कपड़ा दुकान बंद नहीं होती. अपनी दुकान में बैठने के लिए जयपाली ने 200 रुपये रोजनदारी पर एक व्यक्ति को रोजगार पर रख लिया है.  जयपाली मरकाम मूलतः जनजातीय वर्ग से हैं. उनका जीवन हमेशा कठिनाइयों से भरा रहा. गरीबी और संघर्ष के बीच उसने कई रातें भूखे पेट बिताई, लेकिन कभी हार नहीं मानी. अपने सपनों को हकीकत में बदलने की इच्छा और अपने परिवार को बेहतर जीवन देने की चाह उसके मन में हमेशा बनी रही.

10 हजार के लोन से की शुरुआत

अपनी दशा और दिशा सुधारने के लिए जयपाली राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ गईं. वे अपने गांव के 'मां नैना आजीविका स्व-सहायता समूह' की सदस्य बन गईं. इस समूह की बचत से उन्हें पहली दफा 10 हजार रुपये लोन मिला, जिससे किराना दुकान खोली. दूसरी बार एक लाख रुपये लोन मिला, इससे जनरल स्टोर खोला. तीसरी बार 3 लाख रुपये लोन मिला, तो जयपाली ने इसमें अपनी जमा-पूंजी मिलाकर एक छोटी-सी कपड़ों की दुकान खोल ली.

बेरोजगार को रोजगार दिया

बस, यहीं से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आ गया. शुरुआत में दुकान चलाना एक बड़ी चुनौती थी. न तो जयपाली के पास व्यापार का अनुभव था और न ही कोई बड़ी पूंजी, फिर भी, उसने अपने व्यापार को लगन से आगे बढ़ाया. आज अपनी मेहनत और समझदारी से जयपाली हर महीने 15 हजार रुपये से अधिक कमा रही हैं. अपने बच्चों के लिए भी उसने अच्छी शिक्षा का इंतजाम कर दिया है. इतना ही नहीं, जयपाली ने अपनी दुकान में एक बेरोजगार व्यक्ति को रोजगार भी दे दिया है, जो कपड़े का व्यापार चलाने में उसकी मदद भी करता है. जयपाली की सफलता का राज उसकी कभी न टूटने वाली उम्मीद और कड़ी मेहनत में छिपा है. आज वह एक सफल कपड़ा व्यापारी के रूप में जानी जाती हैं और अपने जनजातीय समुदाय के लिए एक प्रेरणापुंज बन गई हैं.

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