पिता का शौक पूरा करने के लिए इंजीनियर ने छोड़ दी बड़े पैकेज की नौकरी, अब खेती से कर रहे मोटी कमाई

पिता का शौक पूरा करने के लिए इंजीनियर ने छोड़ दी बड़े पैकेज की नौकरी, अब खेती से कर रहे मोटी कमाई

सतीश ने अपने पिता से खेती की ज़िम्मेदारी ली, जिन्होंने चार दशकों से ज़्यादा समय तक खेती की थी. कुछ सालों तक अपने पिता की सहायता करने के बाद, सतीश ने 2014 में खेती की ज़िम्मेदारी संभाली और मज़दूरों की कमी को दूर करने के लिए मशीनीकरण की शुरुआत की.

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पिता का शौक पूरा करने के लिए इंजीनियर ने छोड़ दी बड़े पैकेज की नौकरी, अब खेती से कर रहे मोटी कमाईकृषि सक्सेस स्टोरी. (सांकेतिक फोटो)

भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अब खेती-किसानी से दूरी बना रहे हैं. सभी लोगों की रूचि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने वाले कारोबार में बढ़ रही है. लेकिन आज हम एक ऐसे युवा इंजीनियर के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने अपने पिता के शौक को पूरा करने के लिए अच्छी-खासी सैलरी की नौकरी छोड़ दी. अब वह गांव में आकर खेती-किसानी कर रहे हैं. खास बात है कि ये युवा इंजीनियर ड्रोन और आधुनिक तकनीकों की मदद से खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है. अब वह दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सफल युवा किसान का नाम रेड्डी सतीश है और वह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के रहने वाले हैं. पहले वह पूर्व किंगफिशर एयरलाइंस में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करते थे. लेकिन पिता के शौक को पूरा करने के लिए साल 2010 में नौकरी छोड़ दी. तब से वे गांव में आकर खेती कर रहे हैं. वे अपने परिवार की 30 एकड़ जमीन पर ड्रोन सहित आधुनिक तकनीक का उपयोग करके धान, मूंगफली और दाल जैसी नकदी फ़सलें उगा रहे हैं.

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साल 2010 में अपने गांव लौट आए

रेड्डी रामबाबू और भानुमति के तीन बेटों में सबसे छोटे सतीश अपने परिवार की खेती की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. वे अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए 2010 में अपने गांव लौट आए. उनके बड़े भाई, किरण कुमार और कृष्ण राव भी क्रमशः सॉफ़्टवेयर इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं और अब विदेश में बस गए हैं.

2014 में खेती की ज़िम्मेदारी संभाली

सतीश ने अपने पिता से खेती की ज़िम्मेदारी ली, जिन्होंने चार दशकों से ज़्यादा समय तक खेती की थी. कुछ सालों तक अपने पिता की सहायता करने के बाद, सतीश ने 2014 में खेती की ज़िम्मेदारी संभाली और मज़दूरों की कमी को दूर करने के लिए मशीनीकरण की शुरुआत की. उन्होंने ट्रैक्टर, ड्रम सीडर, हार्वेस्टर और स्प्रेयर सहित कृषि मशीनरी खरीदी, जिससे इनपुट लागत में प्रति एकड़ 10,000 रुपये तक की कमी आई.

 ड्रोन तकनीक से कीटनाशकों का छिड़काव

कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), अमदलावलासा और कृषि महाविद्यालय, नैरा के कृषि वैज्ञानिकों डॉ. चिन्नम नायडू, डॉ. के. भाग्यलक्ष्मी और श्रीनिवास राव के मार्गदर्शन में, सतीश ने अपनी पैदावार में सुधार किया. उन्होंने हाल ही में विमान रखरखाव में अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन तकनीक की शुरुआत की.

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खेतों में टहलना है बहुत अधिक पसंद

सतीश ने TNIE को बताया कि मुझे आसमान में उड़ने के बजाय अपने खेतों में टहलना अधिक संतुष्टि देता है. अगर आधुनिक तकनीकों को अपनाया जाए और प्राकृतिक आपदाओं को टाला जाए तो कृषि अधिक लाभदायक है. आज, युवा प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो खाद्यान्न की कमी से मुक्त भारत की दिशा में काम करने में राज्य और राष्ट्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है.

 

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