प्रोसेस‍िंग यूनिट्स बदलेंगी यूपी की कृषि अर्थव्‍यवस्‍था की तकदीर, जानिए क्‍या है सरकार की रणनीति

प्रोसेस‍िंग यूनिट्स बदलेंगी यूपी की कृषि अर्थव्‍यवस्‍था की तकदीर, जानिए क्‍या है सरकार की रणनीति

पूरे देश में बागवानी को बढ़ावा दिया जा रहा है, क्‍योंकि यह पारंपर‍िक खेती के मुकाबले 2 से ढाई गुना तक ज्‍यादा कमाई देने में सक्षण है. अब सरकार ने बहुआयामी रणनीति अपनाते हुए इस क्षेत्र से राज्‍य की कृषि अर्थव्‍यवस्‍था को बढ़ावा देने का प्‍लान बनाया है. जानिए इससे क्‍या-क्‍या होगा.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 14, 2025,
  • Updated May 14, 2025, 3:38 PM IST

यूपी में किसानों की आय बढ़ाने के लिए नई-नई योजनाएं और विभ‍िन्‍न कार्यक्रम अभियान-कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. अब इस क्रम में राज्‍य सरकार ने मंगलवार को बताया कि निर्यात को बढ़ावा देने और खाद्य और पोषण संबंधी जरूरतों को सुरक्षित करने के लिए राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए एक बहुआयामी रणनीति शुरू की गई है. सरकार ने बागवानी का विस्तार करने, लोकल प्रोसेसिंग को सपोर्ट करने और वैश्विक बाजार तक पहुंच खोलने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं.

हर जिले में 1000 प्रोसे‍सिंग यूनिट का लक्ष्‍य

सरकार ने कहा कि नई रणनीति के तहत जमीनी स्तर पर फल और सब्जी प्रसंस्करण यून‍िट लगाना उसका मुख्‍य फोकस है. ये यूनिट्स वैल्‍यू चेन में नर्सरी और वृक्षारोपण से लेकर कटाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग तक में रोजगार पैदा करती हैं. राज्य का लक्ष्य हर जिले में कम से कम 1,000 छोटी और बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाना है. 

बताया गया कि प्रधानमंत्री खाद्य उन्नयन योजना के तहत, यूनिट लगाने वाले  लाभार्थियों को सरकार से 35 प्रतिशत सब्सिडी के साथ 30 लाख रुपये तक का लोन मिल सकता है. अब तक, लगभग 17,000 यूनि‍ट लग चुकी हैं. अगर यूनिट का स्वामित्व किसी महिला उद्यमी के पास है और वह इसके लिए सोलर प्‍लांट लगाना चाहती है तो सरकार उस पर 90 प्रतिशत तक सब्सिडी देती है. 

7 हेक्‍टेयर में बनेगा इंडो-डच उत्कृष्टता केंद्र

बहु-आयामी रणनीति के तहत फूलों की खेती और सब्जी की खेती को और मजबूत करने के लिए, बाराबंकी के त्रिवेदीगंज में सात हेक्टेयर में एक नया इंडो-डच उत्कृष्टता केंद्र बनाया जाएगा. सरकार ने कहा कि डच विशेषज्ञों की मदद से विकसित यह केंद्र अनुसंधान और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा. 

एशिया के सबसे बड़े आगामी जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एक प्रमुख निर्यात केंद्र बनाया जा रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश का पहला गामा विकिरण संयंत्र लखनऊ के नादरगंज में पूरा हो गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हुए उपचारित फल और सब्जियां सुरक्षित रहें और उनकी शेल्फ लाइफ लंबी हो.

प्र‍ति व्‍यक्ति फल-सब्‍जी की खपत इतनी पहुंची

कोविड के बाद, बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के साथ, स्वच्छ और पौष्टिक भोजन की वैश्विक मांग में उछाल आया है. बेहतर शिक्षा, बढ़ती आय के स्तर और स्वास्थ्य जागरूकता के कारण घरेलू खपत भी बढ़ रही है. भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में प्रति व्यक्ति फल और सब्जी की उपलब्धता में सालाना 7 से 12 किलोग्राम की वृद्धि हुई है, जबकि प्रति व्यक्ति उत्पादन और खपत क्रमशः 227 किलोग्राम और 146 किलोग्राम तक पहुंच गई है. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश ने इस वृद्धि में अग्रणी भूमिका निभाई है, जहां फल और सब्जी उत्पादन में देश भर में सबसे अधिक योगदान दिया गया है. सरकार ने कहा कि वह यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रमुख बाजारों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण भी कर रही है. 

खेती से आय हासिल करते हैं 40 प्रत‍िशत लोग

एक बयान में कहा गया है कि मांग-आधारित खेती को बढ़ावा देने से लेकर निर्यात-उन्मुख प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करने तक, हर कदम योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा कृषि को अधिक लाभदायक, रोजगार-सृजन और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए तैयार किए गए व्यापक रोडमैप का हिस्सा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि "देश के लगभग 40 प्रतिशत कार्यबल कृषि में कार्यरत हैं, फिर भी छिपी हुई बेरोजगारी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. एक स्थायी समाधान पारंपरिक खेती से मांग-आधारित कृषि में संक्रमण में निहित है, जो घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों के साथ संरेखित है. 

बागवानी से होती है दो से ढाई गुना ज्‍यादा आय

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष संजीव पुरी ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मांग के आधार पर आय-उन्मुख खेती और उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. बयान में कहा गया कि फलों और सब्जियों की खेती की ओर एक मजबूत कदम शामिल है, जो न केवल पारंपरिक खेती की तुलना में 2 से 2.5 गुना अधिक आय प्रदान करता है, बल्कि श्रम-प्रधान प्रकृति के कारण काफी अधिक रोजगार भी पैदा करता है. इसके अलावा, यह दृष्टिकोण स्वाभाविक रूप से खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाता है - प्रभावी रूप से किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को बोनस प्रदान करता है. (पीटीआई)

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