बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने वैशाली जिले के हाजीपुर प्रखंड के सेंदुआरी और सिधौली गांवों को गोद लिया है. विश्वविद्यालय ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा वित्तपोषित फार्मर फर्स्ट परियोजना के तहत दोनों गांव को गोद लिया है . इसका उद्वेश्य ग्रामीण समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना, सतत कृषि को बढ़ावा देना और स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना है. वहीं इस परियोजना का नेतृत्व विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. उमेश सिंह और अटारी, पटना के निदेशक डॉ. अंजनी कुमार कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बेसलाइन सर्वेक्षण और पार्टिसिपेटरी रूरल अप्रेजल (स्थानीय लोगों की एक दल बनाकर समीक्षा करना) का आयोजन किया गया. इस प्रक्रिया के तहत टीम ने गांवों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्थानीय संसाधनों, कृषि पद्धतियों और बुनियादी ढांचे की गहन समीक्षा भी किया. वहीं, ग्रामीणों ने पशुपालन सहित कृषि में आ रही दिक्कतों और अपने अनुभव को साझा किया.
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विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. उमेश सिंह ने बताया कि यह परियोजना ग्रामीण विकास और सतत कृषि के लिए एक मॉडल के रूप में उभरेगी. उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य किसानों की वास्तविक जरूरतों को समझकर उनकी आय और जीवन स्तर को बेहतर बनाना है. वहीं, पीआरए से प्राप्त जानकारियां परियोजना की रणनीतियों को प्रभावी और दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ बनाने में सहायक होंगी. वहीं, इस तरह की परियोजना केवल वैशाली के इन दो गांवों के लिए, बल्कि अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी. परियोजना के तहत भविष्य में उन्नत कृषि तकनीकों, प्रशिक्षण और संसाधन प्रबंधन पर जोर दिया जाएगा, ताकि किसानों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया जा सके.
फार्मर फर्स्ट परियोजना के तहत पहले चरण में मुख्य अन्वेषक डॉ. वाई.एस. जादौन और सह-अन्वेषक डॉ. कौशलेंद्र कुमार के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ टीम ने दोनों गांवों का दौरा किया. इस दौरे में कृषि विज्ञान केंद्र, वैशाली के प्रमुख डॉ. अनिल कुमार सिंह और गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. कविता वर्मा ने भी सहयोग प्रदान किया. टीम ने गांवों के किसानों और जानकार व्यक्तियों के साथ गहन चर्चा की तथा बेसलाइन सर्वेक्षण और पार्टिसिपेटरी रूरल अप्रेसल (पीआरए) का आयोजन किया.
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