महाराष्ट्र में तीन महीने से भी कम समय में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और शरद पवार की अगुवाई वाली नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है. दोनों पक्ष एक-दूसरे को चुनौती देने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. इसके बीच ही शरद पवार ने राज्य में मराठा आरक्षण का मसला उठा दिया है. उनके ताजा बयान से एक नया विवाद पैदा हो गया है. नवी मुंबई में रविवार को सामाजिक एकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पवार ने महाराष्ट्र के मौजूदा हालात पर चिंता जताई है. महाराष्ट्र में अक्टूबर और नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और 288 सीटों पर कौन विजयी पार्टी होगी, इसकी रणनीति अभी से तैयार होने लगी है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार शरद पवार ने महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच आरक्षण विवाद को लेकर बढ़ते तनाव का परोक्ष रूप से जिक्र किया. पवार ने कहा, 'हाल के दिनों में राज्य में इस बात की चिंता है कि मणिपुर जैसी अशांति महाराष्ट्र में भी हो सकती है. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि 'जाति, पंथ और धर्म से ऊपर उठकर सभी को एक संघ राष्ट्र बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.' पवार ने पिछले साल मई से मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष से निपटने के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की आलोचना की. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि 'सामाजिक अशांति के मद्देनजर मणिपुर में लोगों को सांत्वना देने के लिए उन्हें कभी भी वहां जाने की जरूरत महसूस नहीं हुई.'
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पवार की टिप्पणी से दोनों खेमों के बीच टकराव का एक नया दौर शुरू हो गया है. महाराष्ट्र बीजेपी ने उन पर राज्य में कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करने और दंगे भड़काने का आरोप लगाया है. राज्य बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, 'शरद पवार की तरफ से की गई तुलना गलत है. ऐसी भाषा का प्रयोग करके, वह लोगों को भड़का रहे हैं.' उन्होंने आगे कहा कि लेकिन राज्य के लोग समझदार हैं और हिंसा से दूर रहेंगे. महाराष्ट्र में मराठों और पिछड़े समुदायों के बीच 'विभाजन' बढ़ रहा है. इसमें मराठा वर्ग ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग कर रहा है. कहा जा रहा है कि ध्रुवीकरण अब पूरे राज्य में फैल गया है.
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गौरतलब है कि जून 2023 तक पवार ने पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे साथ ही उनके विकास एजेंडे का समर्थन भी किया. लेकिन जुलाई 2023 से ये समीकरण उस समय से बदल गए, जब अजित पवार ने एनसीपी को बांट दिया. अजित अपने गुट का नेतृत्व करते हुए बीजेपी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना वाली महायुति सरकार में शामिल हो गए थे. कहा गया कि अजित की बगावत बीजेपी की तरफ से रची गई साजिश थी, जिसके कारण पवार और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच संबंधों में नई कड़वाहट पैदा हो गई.