भारत और अमेरिका के बीच पहला व्यापार समझौता 9 जुलाई तक होने की संभावना है. लेकिन इस डील को लेकर भारतीय कृषि क्षेत्र के कई हिस्सों, खासकर छोटे और सीमांत किसानों, में चिंता है. अमेरिका चाहता है कि भारत सोयाबीन, मक्का, सेब और डेयरी उत्पादों पर आयात शुल्क कम करे, लेकिन भारत इन क्षेत्रों में बाजार खोलने से अब तक बचता रहा है. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका चाहता है कि भारत उसके जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) उत्पादों को भी बाजार में आने दे. लेकिन भारत में अब तक केवल BT कपास (2002 में) की व्यावसायिक खेती को ही अनुमति मिली है. GM फूड की खेती और आयात भारत में प्रतिबंधित हैं. हालांकि, 2021 में मुर्गी चारे के लिए 1.2 मिलियन टन (120 लाख टन) GM सोयामील का आयात एक विशेष स्थिति में मंजूर किया गया था.
भारत में लगभग 60 लाख किसान सोयाबीन की खेती करते हैं. सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने अमेरिका से कम शुल्क पर सोयाबीन आयात का विरोध किया है. SOPA के अनुसार, अमेरिका से सस्ते दाम पर आयात होने पर भारत के किसानों को भारी नुकसान होगा. SOPA के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक ने बताया कि अमेरिका में सोयाबीन का भाव लगभग $390/टन (₹35,000/टन) है, जबकि भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य $620/टन (₹53,280/टन) है. ऐसे में अमेरिका से आयात भारतीय उत्पादन को अस्थिर कर सकता है.
नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि भारत अमेरिका से कच्चा सोयाबीन आयात कर उसके तेल निकालने के बाद सोयामील का निर्यात करे. लेकिन SOPA का कहना है कि देश के ज्यादातर प्रोसेसिंग प्लांट मध्य भारत में हैं, जिससे ट्रांसपोर्टेशन लागत बढ़ेगी और यह योजना व्यावसायिक रूप से फायदेमंद नहीं होगी.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय डेयरी संघ के अध्यक्ष आर.एस. सोढ़ी ने कहा कि भारत का डेयरी क्षेत्र करोड़ों छोटे किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन है. अमेरिका से डेयरी उत्पादों के आयात से यह क्षेत्र प्रभावित हो सकता है. भारत दूध उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है और सरकार लंबे समय से इस क्षेत्र की रक्षा के लिए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं बनाए रखती है.
भारत में छोटे किसानों की औसतन जोत 2.7 एकड़ है, जबकि अमेरिका में औसतन 466 एकड़ की खेती होती है. ऐसे में व्यापार समझौते से मक्का, सोयाबीन, डेयरी और पोल्ट्री (जैसे चिकन लेग्स) पर असर पड़ सकता है. भारत में चिकन लेग्स पर फिलहाल 100% शुल्क है, जिसे कम करना भारतीय पोल्ट्री किसानों को प्रभावित कर सकता है.
कृषि अर्थशास्त्री श्वेता सैनी के अनुसार, भारत सही दिशा में कदम उठा रहा है और अमेरिकी दबाव के बावजूद अपने बाजारों को खोलने में सतर्कता बरत रहा है. देश के लाखों छोटे किसानों के हितों की रक्षा करते हुए व्यापार समझौते पर पहुंचना बहुत जरूरी है, ताकि आर्थिक संतुलन और स्थानीय आजीविका दोनों को बनाए रखा जा सके.
देश के किसान संगठनों और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि सरकार इस समझौते में छोटे किसानों के हितों को प्राथमिकता देगी और ऐसे किसी भी निर्णय से बचेगी जो स्थानीय कृषि उत्पादन या रोजगार को नुकसान पहुंचा सके.
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