मध्य कर्नाटक के किसानों को अभी तक सूखा राहत कोष का इंतजार है. यहां के कई जिलों में सूखा राहत कोष का वितरण अधूरा रह गया है. इसकी वजह से हजारों किसान आर्थिक सहायता से वंचित रह गए हैं जिसकी उन्हें सख्त जरूरत है. कई तकनीकी मुद्दों ने कई किसानों के बैंक खातों तक मुआवज़ा पहुंचने पर रोक लगा दी है. इससे प्रभावित किसानों में निराशा और गुस्सा है. यहां तक कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की तरफ से दी गई चेतावनी का भी कोई असर नहीं हुआ है और किसानों तक मुआवजा नहीं पहुंचा.
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अधिकारियों को प्रक्रिया में तेजी लाने की चेतावनी दी थी. इसके बावजूद अभी तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकला है. उदाहरण के लिए राज्य के दावणगेरे जिले में मानसून के मौसम में 1.64 लाख हेक्टेयर में फसलें बोई गईं. इसमें से 1.22 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती की गई जो जिले के लक्ष्य से 2,000 हेक्टेयर अधिक थी. हालांकि, बुवाई के बाद बारिश की कमी के कारण फसलें नष्ट हो गईं और मवेशियों के लिए चारे की भारी कमी हो गई.
किसानों की सारी उम्मीदें भी मिट्टी में मिल गईं और वो गंभीर आर्थिक संकट में आ गए. इसी तरह से पड़ोसी चित्रदुर्ग जिले में, किसानों ने मानसून के दौरान 3.21 लाख हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य रखा था. उन्होंने नारियल और मक्का समेत कई फसलें लगाईं लेकिन बारिश ठीक से नहीं होने की वजह से उन्हें भी इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा.
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राज्य में इस समय मानसून की बुवाई जारी है और फसल नुकसान के लिए मुआवजा मिलने में देरी ने किसानों की बीज और उर्वरक खरीदने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है. कई किसानों ने अपने बैंक खातों में मुआवजा न आने पर गुस्सा जताया है. वहीं अधिकारी अक्सर देरी के लिए जो वजहें बताते हैं वो पूरी तरह से अस्पष्ट होती हैं. डिप्टी कमिश्नर डॉक्टर एम.वी. वेंकटेश की मानें तो मुआवजा आधार कार्ड से जुड़े बैंक खातों में ट्रांसफर किया जाना चाहिए. हालांकि कर्ज का निपटारा करते समय कई तरह की मुश्किलें सामने आती हैं. इससे बैंकों को अकाउंट डिटेल्स फिर से भेजनी पड़ती हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि ऐसे बैंकों के खिलाफ सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी.
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असमय बारिश के कारण फसल नहीं बो पाने वाले किसान भी बिना मुआवजे के रह गए हैं. इसके अलावा कई बैंक बकाया कर्जों को निपटारा करने के लिए सूखा राहत निधि एलॉट कर रहे हैं जिससे किसानों की आर्थिक परेशानियां बढ़ रही हैं. कुछ मामलों में गृहलक्ष्मी गारंटी योजना और नौकरी गारंटी राशि जैसी सरकारी योजनाओं के धन को भी कर्ज वाले खातों में जमा कर दिया गया. इसकी वजह से दावणगेरे जैसी घटनाएं हुईं जहां किसान संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. साथ ही किसानों ने बैंकों पर गलत तरीके से आवंटित धन वापस करने का दबाव बनाया.
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अकेले दावणगेरे जिले में, 17,597 किसानों को सूखा सहायता के लिए आवंटित 60.23 करोड़ रुपये में से अभी तक कोई राहत नहीं मिली है. इसी तरह, चित्रदुर्ग में 114.68 करोड़ रुपये जारी किए गए लेकिन 6,000 से ज्यादा किसानों को सूखा राहत नहीं मिली है. मुआवजे की इस कमी ने उन लोगों को भी बिना किसी सहायता के छोड़ दिया है जो बेमौसम बारिश के कारण फसल नहीं बो पाए.
इसके अलावा ये किसान बीमा मुआवजे के लिए भी अयोग्य हैं क्योंकि बीमा कंपनियां बिना बोई गई फसलों के दावों पर विचार नहीं करती हैं. कई किसानों के बैंक खाते उनके आधार नंबर से ठीक से जुड़े नहीं हैं जिससे फंड ट्रांसफर में देरी हो रही है. मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला प्राउट्स सॉफ्टवेयर आधार सिस्टम के साथ पूरी तरह से लिंक्ड नहीं है. बैंकों की तरफ से इस्तेमाल किए जाने वाले IFSC कोड में गलतियां फंड ट्रांसफर रोक सकती हैं.