
अगर इस खरीफ सीजन में आप केमिकल खेती से जैविक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं, तो आपको जैविक खेती के प्रमाणीकरण के लिए कुछ अहम बातों पर ध्यान देना होगा. सबसे पहले, जिन खेतों को आपने जैविक खेती के लिए चुना है, उन खेतों में लगातार 3 सालों तक केवल जैविक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग करना जरूरी है. साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बाहर से किसी भी प्रकार का केमिकल अंश खेतों में न पहुंच सके. जैविक खेती करने वाले किसानों को इस बात का विशेष खयाल रखना चाहिए कि खेतों से मिल रही उपज का प्रमाणीकरण संस्था से समय-समय पर जांच होती रहे, जिससे उपज में केमिकल की मात्रा की जानकारी मिलती रहे.
जैविक खादें मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने में सहायक होती हैं. फसलों को पोषक तत्व के लिए इसमें रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद जैसे कि गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद, बायोगैस स्लरी, नाडेप कम्पोस्ट, नीलहरित शैवाल, मुर्गी खाद, पशुओं के नीचे का बिछावन, सूअर और भेड़-बकरियों की खाद, अजोला और वर्मी कम्पोस्ट, केंचुओं की सहायता से बनी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. इन खादों से मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है और पौधों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं. ये खादें मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारती हैं.
फसलों का अच्छा उत्पादन लेने में जैविक उर्वरकों का प्रयोग लाभदायक सिद्ध हो रहा है. इनमें राइजोबियम कल्चर, एजोटोबैक्टर, राइजोबियम और एजोटोबैक्टर वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन (78 प्रतिशत) को यौगिकीकरण द्वारा भूमि में जमा करके पौधों को उपलब्ध कराते हैं. एजोस्पाइरिलम मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाने का काम करते हैं. अजोला, वैसीकुलर माइकोराइजा, नील-हरित शैवाल और बायो एक्टिवेटर प्रमुख हैं. पी.एस.बी कल्चर मिट्टी में अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील अवस्था में बदल कर पौधों के लिए फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाते हैं. फसलों की उपज में 10 से 25 प्रतिशत तक वृद्धि होती है. यह टिकाऊ खेती और मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने मदद करता है.
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हरी खाद का प्रयोग करने से मृदा में कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे मुख्य तत्वों के अलावा सभी तरह के पोषक तत्वों की मात्रा और उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है. हरी खाद के लिए मुख्यतः दलहनी फसलों का प्रयोग किया जाता है. इन फसलों से हरी खाद बनाने में लगभग दो महीने का समय लगता है. इसमें मुख्य फसलें जैसे सनई, ढैंचा, लोबिया, मूंग, ग्वार आती हैं. इसमें हरी खाद को फसलों में फूल आने से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी में दबा देना चाहिए और लगभग 10 दिन का समय सड़ने में देना चाहिए जिससे कि हरी खाद की फसलें पूरी तरह मिट्टी में मिल जाएं.
जैविक खेती करने वाले किसान को साल में एक बार दलहनी फसल जरूर उगानी चाहिए, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु की गांठें होती हैं, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करती हैं. जैसे, गेहूं की कटाई के बाद मूँग की फसल लेना चाहिए मूंग की फलियों की दो तुड़ाई के बाद फसल की जुताई कर मिट्टी में मिला देना.
फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें खेत में मिलाकर खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग करें. इससे न केवल मृदा की गुणवत्ता बढ़ती है, दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की समस्या भी कम होती है.
इसमें फसलों पर कीट-बीमारी की रोकथाम के लिए नीम के उत्पाद, ट्राइकोग्रामा, ट्राइकोडर्मा और न्यूमैरिया जैसे जैविक कीटनाशक भी कीटों से छुटकारा दिलाने में सहायक होते हैं. विभिन्न फसलों में कीटों के प्रकोप से बचने के लिए नीम के उत्पाद का उपयोग करें. इसमें नीम की निबोली का पाउडर, नीमगोल्ड, नीम का तेल, निमोलीन के नाम हैं. तनाछेदक, फलीछेदक और पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम के लिए अंडों पर आक्रमण करने वाला सूक्ष्म अंड परजीवी ट्राइकोग्रामा का इस्तेमाल करें. भूमिजनित फफूंद रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा और न्यूमैरिया का इस्तेमाल करें.
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जैविक खेती के माध्यम से न केवल मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि फसलों की उपज भी बढ़ती है. इसके लिए जैविक खाद, जैविक उर्वरक और जैविक कीटनाशकों का सही प्रयोग करना जरूरी है. सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, जिससे किसानों को फायदा हो रहा है. जैविक खेती का प्रयोग घरेलू उपयोग के लिए भी बहुत सफल है. जैविक खेती एक स्वस्थ और टिकाऊ विकल्प है जो न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करता है बल्कि उपभोक्ताओं के लिए भी सुरक्षित है. अगर आप बड़े स्तर पर नहीं कर सकते, तो छोटे स्तर पर घरेलू उपयोग के लिए भी जैविक खेती का प्रयास करें और केमिकल उपज से होने वाली बीमारियों से बचें.
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