हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 300 करोड़ रुपये का घोटाला! पूर्व मंत्री का बड़ा आरोप 

हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 300 करोड़ रुपये का घोटाला! पूर्व मंत्री का बड़ा आरोप 

हरियाणा के पूर्व मंत्री की तरफ से राज्यपाल के पास औपचारिक तौर पर शिकायत दर्ज कराई गई है. इस शिकायत में दलाल ने कृषि विभाग के एक सीनियर ऑफिसर और उनके सब-आर्डिनट पर भिवानी और चरखी दादरी जिलों में कपास की फसल के नुकसान में धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया है.

हरियाणा में पीएम फसल बीमा योजना में करोड़ों का घोटाला!  हरियाणा में पीएम फसल बीमा योजना में करोड़ों का घोटाला!
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 07, 2025,
  • Updated Apr 07, 2025, 1:35 PM IST

हरियाणा के पूर्व कृषि मंत्री करण सिंह दलाल ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत 300 करोड़ रुपये से ज्‍यादा के फसल बीमा घोटाले का आरोप लगाया है. उनका दावा है कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों ने एक निजी बीमा कंपनी के साथ मिलीभगत कर बड़े पैमाने पर हेराफेरी की है. इस खबर ने न सिर्फ हरियाणा में बल्कि देश के कई राज्‍यों में हलचल मचा दी है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना  को 18 फरवरी 2016 को पीएम नरेंद्र मोदी ने लॉन्‍च किया था. इसका मकसद किसानों को उनकी उपज पर बीमा मुहैया कराना और उन्‍हें आर्थिक सुनिश्चितता प्रदान करना था. 

क्‍या है पूर्व मंत्री की शिकायत में 

अखबार द ट्रिब्‍यून की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा के राज्यपाल को दलाल की तरफ से औपचारिक तौर पर शिकायत दर्ज कराई गई है. इस शिकायत में दलाल ने कृषि विभाग के एक सीनियर ऑफिसर और उनके सब-आर्डिनट पर भिवानी और चरखी दादरी जिलों में कपास की फसल के नुकसान में धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि फसल के नुकसान में जो आकलन किया गया है वह पूरी तरह से धोखाधड़ी पर आधारित है. साथ ही दावों का निपटान करने के लिए अनिवार्य पीएमएफबीवाई गाइडलाइंस को भी दरकिनार कर दिया गया. 

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हुआ गलत डेटा का प्रयोग 

दलाल ने अपनी शिकायत में यह आरोप भी लगाया है कि अधिकारियों ने फसल कटाई प्रयोग (सीसीई) करने के बजाय तकनीकी उपज डेटा का प्रयोग किया. फसल कटाई प्रयोग यानी सीसीई पीएमएफबीवाई के तहत कपास जैसी गैर-धान और गैर-गेहूं फसलों का आकलन करने के लिए अनिवार्य तरीका है. दलाल का कहना है कि 'तकनीकी उपज' की मंजूरी सिर्फ गेहूं और धान के लिए है और तब भी सीसीई डेटा के साथ 70:30 के अनुपात में ही है. 

किसानों को हुआ करोड़ों का नुकसान 

दलाल ने कहा, 'तकनीकी उपज का प्रयोग करने का फैसला न सिर्फ अनधिकृत था बल्कि यह राज्य तकनीकी सलाहकार समिति (एसटीएसी) की तरफ से लिया गया था. जबकि समिति का  कार्यकाल 1 अगस्त, 2024 को ही खत्‍म हो गया था. फिर भी, इसने 20 अगस्त को एक मीटिंग की जिससे इसके सभी निर्णय कानूनी रूप से अमान्य हो गए.' शिकायत में उन्‍होंने आगे कहा है कि भिवानी में कपास किसानों को खारिज या कम किए गए दावों में 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. वहीं चरखी दादरी के किसानों को लगभग 100 करोड़ रुपये से वंचित होना पड़ा है. 

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विरोध को किया गया नजरअंदाज 

दलाल ने आंतरिक असहमति का भी हवाला दिया है. उनका कहना है कि भिवानी के कृषि उपनिदेशक ने कपास के लिए तकनीकी उपज के प्रयोग का साफतौर पर विरोध किया था लेकिन उनकी आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया गया. इसी तरह भिवानी की जिला स्तरीय निगरानी समिति ने बीमा कंपनी को पूरे किए गए सी.सी.ई. के आधार पर दावों का निपटान करने का निर्देश दिया था. इस निर्देश पर बीमा कंपनी ने कृषि निदेशक के पास जाकर विरोध जताया था. दलाल ने राज्यपाल से मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश देने और संबंधित अधिकारियों और बीमा कंपनी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया है. 

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